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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org बोल पड़ा, देख दोस्त। जलने वालों की आदत होती है, वे किसी की अच्छाई और उन्नति देख नहीं सकते और जलते है । यह बंदर भी जलन के कारण ही ऐसा बोल रहा है, तुम इस की बातों पर ध्यान मत दो। उन दोनों ने बंदर की बात को सुना अनसुना कर दिया। दोनों मित्रों ने मिलकर विचार विमर्श किया कि हम एक ऐसा भव्य आयोजन करें कि जिस में जंगल के सभी प्राणियों को आमंत्रित किया जाय। और सभी को बताया जाय कि ये हमारे जंगल के नये राजा है। हम इन्हें राजी खुशी और सर्वानुमत से हमारे राजा घोषित कर रहे है। इससे सभी को पता भी चल जाएगा और सम्मान भी हो जायेगा । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एक दिन तय किया गया और सभी प्राणियों को सम्मान समारंभ का निमंत्रण भी दे दिया गया । नियत समय पर जंगल के सारे प्राणी भी पहुँच गयें। तब शियार ने नये राजा का परिचय कराते हुए कहा ! मेरे वनवासियों! आज बड़ी खुशी का दिन है क्योंकि हमें एक सुयोग्य, रक्षक, पालक राजा मिले है अतः मैं यह घोषणा करता हूँ कि आज से हम सभी के राजा यही होंगे। बोलो वनराज की जय....... सभी प्राणियों के जयकारे से सारा जंगल गुंज उठा। फिर वहाँ उपस्थित सभी प्राणी नाचने लगे, और गाने लगे, यूं खुशी का इजहार करने लगे। इन्हें नाचते और गाते हुए देखकर गधा भी जोश में आ गया और सिंहासन से नीचे उतर कर पंचम स्वर में ढेंचूढ़ें......... करते हुए नाचने लगा, दो तीन ठुमके लगाए त्यों ही ओढ़ी हुई शेर की खाल नीचे गिर पड़ी। यह देखते ही जंगल के सारे प्राणी गधे को मारने के लिए उसकी तरफ लपके कि इस नालायक गधे ने हम सब को बेवकूफ बनाया। इसे पकड़ कर धुलाई करो, छोड़ो मत! गधा वहाँ से छिटककर ऐसा भगा ऐसा भगा कि सीधा गाँव में पहुँच कर ही रूका । फिर दुबारा जंगल में जाने की बात तो दूर रही उस तरफ देखा भी नहीं । इस कहानी से दम्भ को अनर्थ का कारण जान कर आत्मार्थी साधक को उसे छोड़ना चाहिए, क्योंकि आगम में बताया है कि सरलता से आत्मा की शुद्धि होती है। जैसे कमल पर हिमपात, शरीर में रोग, वन में आग, दिन में रात 113 For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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