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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वेराइटी थी ठंडा, सुगन्ध युक्त जल | राजा से रहा नहीं गया उन्होंने पूछ ही लिया, यह जल तो बहुत अच्छा लग रहा हे नगर के किस कुएँ का है? या कहीं बाहर से मंगवाया हैं? मंत्री बोला। राजन! कुएँ से क्या मतलब? पानी से मतलब है न? परन्तु राजा ये जानना चाहते थे उनके मन में ये उत्सूकता तीव्र थी कि पानी कहां से लाया गया है? मंत्री बोले राजन्! पहले आपकी तरफ से निर्भयता का वचन चाहता हूँ। अरे मंत्रीश्वर! आप निर्भयता के वचन की बात कर रहे है? पानी का उत्पत्तिस्थान जानने के बाद मैं तुम्हें बक्षिस दूंगा, क्योंकि इस पानी से मैं बहुत-बहुत तृप्त और तुष्ट हुआ हूँ। तब मंत्री बोले राजन्! यह किसी कुएँ बावडी, नदी, गांव, नगर से लाया गया पानी नहीं है। परन्तु आपको याद होगा आज से कितनेक दिन पहले आप मैं और कुछ साथी एक गटर के निकट से गुजर रहे थे उससे भयंकर दुर्गन्ध निकल रही थी, दुर्गन्ध से आपने घूटन महसूस की थी और मैं उस पुद्गल के खेल से स्वस्थ रहा था। उसी पानी को शुद्ध बनाया अनेक प्रक्रियाओं से उसे ही मीठा और सुगन्धित बनाया है। यह पानी भी मुझे अस्थिर नहीं बना सकता क्योंकि यह भी पुद्गल का ही खेल है, यह मैं जानता हूँ। जिस पानी को देखकर, थूकने का मन होता था, दुर्गन्ध से नाक बंद करने का मन होता था, घृणा होती थी, वही पानी घुट भर-भर कर पीने का मन होता है। दोनों ही पुद्गल की शुद्ध और अशुद्ध अवस्थाएँ है, ऐसा समझने वाला विद्वान दोनों परिस्थितियों में अपने मन के भावों की स्थिरता रख सकता है। वैराग्य की दृढ़ता और मन की स्थिरता के लिए खुद की तीन अवस्थाओं का चिंतन बहुत उपयोगी दिखता है। बचपन के खेल-कुद, यौवन की मस्तियाँ सपने और भावी वृद्धत्व की पराधीनता को प्रतिदिन हर व्यक्ति को नजर के सामने लानी चाहिए। मुवी के सुंदर दृष्य के समान बचपन या बिजली की चमक जैसा यौवन गुजार कर जीवन की नाव वृध्धत्व पाकर लाचार बन गई है। जो वस्तु या व्यक्ति रागद्वेष के निमित्त लेकर उपस्थित हो उससे बचने के लिए उसकी भूत, भावि और वर्तमान अवस्था का विचार करते मन स्थिर और स्वस्थ रह सकता है। प्रतिदिन सवेरे-सवेरे ताजा 103 For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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