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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org (14) स्थैर्यम् " स्थिरता रखनी " समय का जादु जगत के समस्त पदार्थों और मनुष्यों पर समान रूप से असर कर रहा है। प्रत्येक पदार्थ को पर्याय की अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है। पर्याय की तुलिकाहर किसी के उपर पल-पल में फिरा करती है। कोई अवस्था स्थिर नहीं होती । काल का जादु कहाँ रूकता है। नया जीर्ण बनता है, लघु ज्येष्ठ बनता है, सुक्ष्म स्थूल बनता है, रिवला कुम्हलाता है, तंदुरस्त म्लान बनता है, फिर भी हम जैसे कई इस जादू के जाल में मुग्ध होकर फंसते रहते हैं। नवजात शिशु धीरे-धीरे माँ की गोद छोडकर स्वयं दुध, पानी पीने लगता है। शिशु से शैशव, तरूण, युवा, प्रौढ़ और वृद्ध । निवृति की अवस्था में पहुँचने पर जैसे ऑफिस / दफ्तर से एक के बाद एक व्यक्ति निवृत्त होते जाते हैं, वैसे मुँह से एक के बाद एक दाँत गिरते जाते है। काल की तुलिका फिरती मुँह पर झुरियाँ आ जाती है, कमर कमान की तरह हो जाती है, पाँव टेढ़े हो जाते है। प्रसृति गृह से प्रारंभ हुई जीवन यात्रा मरघट में समाप्त होती है। खेत में कपास देखकर किसी को कल्पना भी न आये कि इस पर कई प्रक्रियाएँ होंगी और कपास मनोहर सूट में बदल जायेगा। दो तीन पिकनीक या पार्टी में वह सूट बहुत उपरी स्थान पायेगा, पश्चात् उसका स्थान धीरे-धीरे नीचे गिरता जायेगा और एक दिन आयेगा जब कपाट में लटके रहने के लिए एक हेंगर भी नहीं मिलेगा अर्थात् कपाट में उसकी जगह नहीं रहेगी। 5000 के उस सूट की जगह कागज के बोक्स, लोहे या एल्युमिनियम की पेटी में होती है। प्लास्टिक कंपनी में बना बास्केट किसी ऑफिस में स्टेशनरी रखने के लिए मैनेजर के टेबल पर जगह पाता है, दिन बितते-बितते उसका रंग फिका पड़ जाता है और मैनेजर के टेबल से उस बास्केट की छुट्टी हो जाती है। ऑफिस के किसी एक कोने में डस्टबीन की अपमानित दशा को प्राप्त करता है। जिसमें क्लार्क पीक करते हैं। बील्डर, कोन्ट्राक्टर, आर्कीटेक्ट और इन्जीनियर इत्यादि की कुशलता से एक सुंदर बंगला तैयार होता है। प्लास्टर ऑफ पेरीस की छत, 101 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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