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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobaith.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ख्यान CRCH श्रीयशादमा तेच्चिय गज्झवया न जहिच्छावाइणो इयरे ॥११॥ भासादोसविहिन्नू साह साहुस्स कारणवसेणं । साहइमा सूत्रविचारे कालपमाणं पोरिसिपुरिमड्डमाईयं ॥१२॥ तं सोउं भुजंतो पच्चक्रवाणस्स होइ नहु भंगो । अहऽणाभोगा मुणिणा पुरिमाचे कालपमाणं समुल्लवियं ॥ १३ ॥ अन्नो वा उवलद्धो ठायब्वं तत्थ मुहगयं सव्वं । रक्वाइसु खिवियव्वं हत्थगयं स्वरूपे भायणे चेव ॥ १४ ॥ आयमिउं इहरा वा खमियब्वं जाव पुज्जए नियमो । पुण्णे पच्चक्वाणे पुणोऽवि भुंजज्ज ॥८ ॥ सिरिऊणं ॥१५॥ सव्वसमाही एसा गाढायंकाइविरहियत्तं जं । तप्पच्चयआगारो तीए च्चिय पच्चक्खाणंति ॥२६॥ | तिब्वसूलाइदुक्खा संजाए अदृरोहझाणाम । तस्सोवसमनिमित्तं ओसहपत्थाइकरणेऽवि ॥९७।। नो भंगो संपज्जइ दुक्खावगमे समाहिलाभेउ । ठायव्वं नो ठायइ तो भंगो होइ नियमस्स ।। २८॥ पोरिसिपच्चक्रवाणं भणिय संपइ भणामि पुरिमई । तत्थ य एयं सुत्तं सत्तविहागारसंजुत्तं ॥ १०॥ सूरे उग्गए पुरिमड्ढं पच्चक्खाइ, चउब्विहंपि आहारं असणं ४, अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं पच्छन्नकालेणं दिसामोहेणं साहवयणणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरहत्ति । ॥८ ॥ सूरुग्गमाइयाणं पयाण अत्थो इहेव तह चेव । जह पोरिसीए भणिओ नवरि विसेसो इमो इत्थ ॥ १०॥४ पुरिमं पढमं अद्धं दिणस्स पुरिमड्डमेयविसयं तु । पच्चक्खाणंपि भवे पुरिमटुं तइयगो नियमो ॥ १०१॥ मयहरयंट गुरुतरयं पच्चक्खाणाणुपालणाओऽवि । बहुनिज्जरानिमित्तं तहेव पुरिसंतरासझं ॥१०२॥चेइयगिलाणसंघाइयाण For Private and Personal Use Only
SR No.020579
Book TitlePratyakhyan Swarupam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
PublisherRushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publication Year1927
Total Pages120
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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