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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीयशोदेश तओ परओ ।। ८० ॥ किश्चिदूनत्वाविवक्षया चतुर्भिर्गुणनं । मयरे पुण दिणमाणं चउवीसं नाडिगाओ पढमदिणे। सूत्रविचार वीये छत्तीसं घडियाओ रयणिपमाणं मुणेयव्वं ।।८।। परओ दिणस्स वुड्डी रयणीहाणी य पुवनिद्दिष्टा । ता नायव्वा पौरुषी प्रत्याख्यान जाव उ उत्तरअयणस्स चरिमदिणं ॥ ८२ ॥ एवं च पडइ चडइ व घडिया पक्वेण दोन्नि मासेण । दिणरयणिस्वरूपे. पमाणाओ भणियविहाणेण अयणदुगे ।। ८३ ॥ पोरिसिविसओ नियमोवि पोरिसी तत्थ सुत्तमेयं तु । आगार छ के जुत्तं भणियं जिणगणहरिंदेहिं ।। ८४ ।। ॥ ७॥ पोरिमिं पच्चक्खाद उग्गए सूरे, चउविहंपि आहारं असणं ४, अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेण 3 पच्छन्नकालणं दिसामोहेणं साहवयणेणं सबसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरइत्ति ॥ एयस्सवि वक्खाणं जह नवकारे तहेव कायब्वं । नवरं पच्छन्नेणं कालेणं एवमवसेयं ॥ ८५ ।। मेहमाहियारयाईछन्ने सूरे न नजई दिवसो | तो पच्छन्ने काले पुन्ने पहरोत्ति कलिऊण ॥ ८६ ॥ भुजंतस्स न भंगो अह भुजंतो ४स कहवि जाणेज्जा । नो पुन्नो तो सहसा ठाएज्जन ठाइ तो भंगो||८७ातथा--कोवि हु कहिपि देसे दिसिमोहा लेपच्छिमंति पुव्वंपि । कलिऊण गओ पहरो इमोऽवरण्होत्ति बुद्धीए ।। ८८ ॥ भुजेज्जा न य भंगो मोहावगमाइणा उ विन्नाए । ठायव्वं नो ठायइ जइ निरवेक्खस्स तो भगो।।८९।। साहुवयणं तु एत्थं उग्घाडा पोरिसित्ति एमाई।। सोच्चा भुंजतदोसो नाए पुण इहवि ठाएज्जा ।। ९०॥ एत्थ इमो भावत्थो जइणो भासंति सच्चमेव गिरं । तो RECORES-REAK For Private and Personal Use Only
SR No.020579
Book TitlePratyakhyan Swarupam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
PublisherRushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publication Year1927
Total Pages120
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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