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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुदर्शिनी टोका अ०५ सू०११ स्पर्शेन्द्रियसंवर'नामकपञ्चमभावनानिरूपणम् ९३२ प्ठशीपच्छेदनम्= जिम्भछेयण' जिवाच्छेदनम् , 'वसणनयणहिययदंतमंजण' वृषगनयनहृदयदन्तमञ्जनम्वृषणस्य अण्डकोशस्य, नयनयोः, हृदयस्य दन्तानां च भञ्जनम्-विनाशनम् , 'जोत्तलयकसप्पहार' योक्त्रलताकशाप्रहार:-योक्त्रेण रज्जुविशेषेण, लतया वेत्रादिलतया; कशया च यः प्रहारः, प्रहारः, 'पादपण्डिजाणुपत्थरनिवाय ' पादपाणिजानुप्रस्तरनिपातः पादयोः चरणयोः, पायर्यो :पादपश्चाद्भागयोः, जानुनोः= घुटना ' इतिभाषा प्रसिद्धगेश्व प्रस्तरनिपात:= पाषाणपातः, ‘पीलणं' पीडन-यन्त्रे पीडनम् , ' कविक छु' कपिकच्छु। तीव्रकण्डूतिकारकवनस्पतिविशेषः, 'अगणि' अग्निः, 'विच्छुयडक' दृश्चिकदंशः 'वायातबदंसमसंगनिवाए' वातातपदंशमशनिपातः वातस्य आतपस्य दंशानां मशकानां च निपतेनम् , एतेषां द्वन्द्वः, ताँस्तथोक्तान् स्पृष्ट्वा, तथा-'दुणिसिज्ज दुन्निसीहिया' दुष्टनिषद्यादुनै षेधिक्या दुष्टनिषद्याः क्षुद्रासनानि, दुनै षेधिकस्य कष्टकरस्वाध्यायभूमयस्ताश्वस्पृष्ट्वा, 'तेसु तेवु-उक्तेषु 'अमगुन्नपावगेसु' अमनोज्ञपापकेषु नासिका, होठ ओर मस्तक का छेदन करना, 'जिन्भच्छेयण ' जीभ का छेदन करना 'वसण-नयग-हियय-दंत-भंजण' अण्डकोष, नेत्र, हृदय और दांतोंका भांगना, 'जोत्त-लय-कस प्पहार' चमडे की रस्सी से, वेत्रादिलता से, तथा चाबुक से प्रहार करना, ‘पादपण्हिजाणुपत्थर निवाय' पांच, एडी, घुटना,इन पर पत्थर का गिरना, 'पील ग' यंत्र में पीलना, 'कविकच्छु-अगणि-विच्छुय-डॅक' करेंच की फली,अग्नि और बिच्छू का डंक-स्पर्श, ‘वायायवदंसमसनिवार' शीतकाल में ठंडे पवन का लगाना उष्णकाल में धूप का लगना, तथा डाँस और मच्छरों का शरीर पर गिरना इन सबके स्पर्श का अनुभव करके(दुहृणिसिज्जदुनिसीहिया)कष्टकारकआसन और स्वाध्याय की भूमि के स्पर्श को अनुभव करके (तेलु यु, “जिन्भच्छेयण " मर्नु छैन ४२०', "वसण-नयण-हियय-दंत-भंजण" मअष, नेत्र, हय भने दांत तो, " जोत्त-लय-कस-पहार" याभानी होशथी नेत२- माहि साथी तथा यामु४थी ३८७२, " पादपण्हिजाणुपत्थरनिवाय" ५, मेडी भने ५ ५२ ५.०२नु ५७, " पीलण "-यमा पा, "कविकच्छ-अगणि-विच्छुय टक्क"-४३'यनी जी, मनि मन बिछानो "५, “ वायायवदंसमसगनिवाए " शियाम 3*५५न पायो, S i તડકો લાગે, તથા ડાંસ અને મચ્છરેનું શરીર પર પડવું, એ બધા સ્પર્શને ०१२ ५२ अनुनय ४ीने “दुद्रुणिसिज्जदुनिसीहिया " ४८।२४ मासन भने २१४यायनी मूभिना २५शने मनुलवाने " तेसु अमणुनपावगेसु" ते For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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