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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुदर्शनी टीका अ० ५ सू० ४ कल्पनीयमशनादिनिरूपणम् ८६९ प्रत्युपेक्षणम् = चक्षुरा निरीक्षणमित्यर्थः, प्रस्फोटनम्=यतनापूर्वकमास्फालनम् आभ्यां सहिता या प्रमार्जना तस्यां कृतायां सत्याम् ' सययं ' सततं ' अहो य राओ य ' अह्नि च रात्रौ च, 'मायणमंडोवहि उवगरणं ' भाजनभाण्डोपध्युपकरणम्, 'अप्पमत्तेण ' अप्रमत्तेन ममादयर्जितेन संयतेन निक्खिवियन्वं' निक्षेप्तव्यं यतनया स्थापयितव्यं च ' गिव्हियन्वं च ' यतनया ग्रहीतव्यं च ' होइ' भवति । एपाचतुर्थसमित्याराधना विज्ञेया ॥ सू० ४ ॥ 6 0 णाए ) प्रतिलेखनाचक्षु द्वारा अच्छी तरह अवलोकन क्रिया और प्रस्फोटन - पतना पूर्वक झटकारना रूप किया तथा प्रमार्जना कर लेने पर ( अहो य राओ य ) दिन में तथा रात्रि में जब कभी रखने और लेने काम पडे तो इन ( भायणभंडोवहिउवगरणं) भाजन, भांड और वस्त्रादिरूप उपधि को (अप्पसरोण) अप्रमत्त होकर साधु को (सययं) नित्य (farasi) यतनासे धरना चाहिये और (गिण्डियन्वं च होइ) यतना से उठाना चाहिये । भावार्थ - इस सूत्र द्वारा सूत्रकार ने कैसा आहार मुनि को लेना चाहिये और क्या २ सामग्री अपने पास रखना चाहिये - यह सब प्रकट किया है। आचोराङ्ग के द्वितीय श्रुतस्कंध में जो पिण्डैवणा नामका प्रथम अध्ययन है उसमें ग्यारह उद्देशों में आहार के जो दोष प्रतिपादित किये गये हैं उन दोषों से जो आहार वर्जित हो, क्रयण आदि की कृत आदि रूप नौकोटियों से जो शुद्ध हो, उङ्गम, उत्पादना और एषणा से जो शुद्ध हो, व्यपगत आदि विशेषणों वाला हो; प्रासुक हो, संयोजनादोष 66 पफोडणपमज्जणाए" प्रतिसेना:- मां बडे सारी रीते यवसेोउन भने પ્રસ્ફોટન–યતનાપૂર્ણાંક ઝટકારવારૂપ ક્રિયા તથા પ્રમાર્જન કર્યાં પછી “ अहोय राओय " हिवसे रात्रे न्यारे पशु सेवा के भूवानी ४३२ पडे त्यारे ते भायणमंडोवहिगरणं ભાજન, ભાંડ અને વસ્ત્રાદિરૂપ ઉપધ્ધિને मण " अप्रमत्त थर्ध ने साधुये " सयय " सहा " निक्खियव्व' "" यतनाપૂર્વક મૂકવા જોઇએ અને “ गियिव्वं च होइ " यतनापूर्वी उठायवा लाये 66 "" अप्प For Private And Personal Use Only ભાવા —આ સૂત્ર દ્વારા સૂત્રકારે કેવા આહાર મુનિએ લેવે! જોઇએ અને કયી કયી સામગ્રી પોતાની પાસે રાખવી જોઈએ તે બધું બતાવ્યું છે. આચારાંગના બીજા શ્રુતસ્કંધમાં જે પિંડૈષણા નામનું પહેલું અધ્યયન છે તેના અગિયાર ઉદ્દેશોમાં આહારના જે દોષોનું પ્રતિપાદન કરવામાં આવ્યું છે તે ઢોષોથી જે આહાર રહિત હોય, ક્રયણ આદિના કૃત દ્વિરૂપ નવ પ્રકારે જે શુદ્ધ હાય, ઉદ્દગમ, ઉત્પાતના અને એષણાથી જે શુદ્ધ હાય, વ્યપગત આદિ વિશેષણા વાળા હોય, પ્રાસુક હાય, સચેાજના દોષ વિનાના હોય, અગાર
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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