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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८५८ प्रश्नव्याकरणसूत्रे पादितमित्यर्थः. ' पच्छाकम्मं ' पश्चात्कर्म, पश्चाद्-दानान्तर कर्म-भाजनपक्षालनादि यत्राशनादौ तत् , तथा 'पुरेकम्मं ' पुराकर्म = पुरा = दानापूर्व कर्म= हस्तलाघवादि यत्र तथा-' नितिगं' नैत्यिकम् = नित्यपिण्डं, दातृपोषणप्रमा णं वाऽवस्थितम् , ' उदगमक्खियं ' उदकक्षितम्-उकादिना, आदिशब्दात्सचित्तपृथिवीकायादिभिरवगुण्ठितम् , उक्तश्च " मक्खियमुदगाइणाउजं जुन्नं " इति । ' अइरित्तं ' अतिरिक्तम् द्वात्रिंशत् , कवला आहारः पुरुषस्य कुक्षिपूरको भवति, स्त्रियश्चाष्टाविंशतिः कवलाः, नपुंसकस्य चतुर्विंशति कवला आहारः। ततो ऽधिक आहारोऽतिरिक्तमुच्यते । तथा-' मोहरं' मौवरम्=पूर्वसंस्तवमातापित्रादि पश्चात्संस्तवश्वशुरश्यालकादिना सह मौखर्येण बहुभाषित्वेन यल्लभ्यते, तदशना - दिकं मौखरमुच्यते । तथा ' सयंगाहं ' स्वयं ग्राहम्-दाय के नादत्तं यद्गृह्यते तत् याचक जनों को देने के प्रयोजन से बनाया गया हो, ऐसा आहार साधु को लेना नहीं कल्पता है । इसी प्रकार जो आहार (पच्छाकम्म) पश्चात् कर्म से युक्त हो, और (परेकम्मं ) पराकर्म से युक्त हो, तथा (नितिगमुदगमक्खियं ) नैत्यिक-नित्यपिंड हो, अथवा-दाता ने जिसे अपने खाने के जितना ही बनाया हो, उदक मुक्षित हो-सचित्त उदक से सचिन पृथिवीकाय आदि से अवगुंठित हो ( अइरित्तं ) अतिरिक्त होपुरुषों की अपेक्षा से बत्तीस ग्रास से, स्त्रियों की अपेक्षा अधाईस ग्रास से और नपुंसक की अपेक्षा चोईस ग्रास से जो अधिक हो, वह आहार भी मुनियों के लिये कल्पित नहीं है । इसी तरह (मोहरं ) जो आहार मौखर हो-पूर्वसंस्तव मातापिता आदि के साथ तथा पश्चात्संस्तव श्वशुर श्यालक आदि के साथ अधिक बातचीत करने से प्राप्त होता हो, (सयं અથવા યાચકજનેને દેવાને માટે બનાવા હોય, એવો આહાર લેવો સાધુને ४६५तो नथी. मे २५ प्रमाणे २ माडा२ “पच्छ।कम्म' " पश्चातभथी युत डाय अने "पुरेकम्म” पु२मथी युक्त यि तथा" नितिगमुदगमक्खियं" નૈત્યિક-નિત્ય પિંડ હોય, અથવા દાતાએ જે પિતાને ખા જેટલો જ બના બે હૈય, ઉદક મુક્ષિત હોય-સચિત્ત પાણીથી, સચિત્ત પૃથ્વીકાય આદિથી Aqागु ति य,“ अइरित” मतिरित साय--पुरुषानी अपेक्षा त्रास ગ્રાસથી, સ્ત્રીઓની અપેક્ષાએ અઠ્ઠાવીસ ગ્રાસથી, અને નપુંસકની અપેક્ષાએ ચાવીસ ગ્રાસથી તે વધારે હોય તે તે આહાર પણ મુનિઓને કલ્પત નથી. से प्रमाणे "मोहर" २ माडा२ भौम२ छाय--पूर्वसत्त१ भाता पिता આદિની સાથે તથા પશ્ચાત્ સંસ્તવ સસરા, સાળા આદિની સાથે અધિક વાત थीत ४२वाथी पास थतो छाय, “ सयंगाह" स्वयपाल डाय-हातान For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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