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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७७८ प्रश्नव्याकरणसूत्रे संजममूलदलियणिभं' तपः-संयममलदलिकनिभमतपः संयमयोः मूलदलिकंमूलद्रव्यम्-मूलधनमित्यर्थः, तस्य निभं सदृशं यत्तत्तथा, तथा--- पंचमहव्वयमुरक्खियं ' पञ्चमहाव्रतसुरक्षितं पञ्चमहावतानां मध्यस्थितत्वेन सुष्टुरक्षितमिव यत्ततथोक्तम् , तथा ' समिइगुत्तिगुतं' समितिगुप्तिगुप्तम्-समितिभिः ईयर्यासमित्यादिभिः, गुप्तिभिः मनोगुप्त्यादिभिश्च गुप्तम्-रक्षितम् , तथा-'झाणवरकगर कयरक्खणं' ध्यानवरमेव-धर्मध्यानमेव कपाटम्-तेन सुष्ठ-शोभनतया कृतं रक्षणं यस्य तत् , तथा-' अज्झप्पदिणफलिहं' अध्यात्मदत्तपरिघम् अध्यात्ममेव सद्भावएव कपाटदृढीकरणाथै दत्तः परिधः-अर्गला रक्षायें यस्य तत् , तथा-'संनद्धबदोच्छइयदुग्गइपहं । संनद्धवद्धावच्छादितगतिपथम्-संनदोबद्धआन्छादितश्च अर्थात् सर्वतो निरुद्रो दुर्गतिपयो दुर्गतिमार्गों येन तत्तथोक्तम् , तथा-' मुगइपमूलदलियणिभं ) तप और संयम का यह ब्रभवयं मूल धन जैसा है। (पंचमहव्वयसुरक्खियं ) जिस प्रकार पांच गुरुयों के बीच में रहा हुआ पुरुष सुरक्षित रहता है उसी प्रकार यह ब्रह्मवर्थ भी पांच महावतों के याच में स्थित होने के कारण सुरक्षित के जैसा है। (समिगृत्तिगुत्त) ईर्यासमिति आदि पांच समितियों से एवं मनोगुप्ति आदि तीन गुप्तियों से भी इसकी मदा रक्षा होती रहती है इसलिये यह समिति और गुप्तियों से भी गुप्त-सुरक्षिन कहा गया है। तथा (झाणवरकवाड सुकयरखणं ) इसकी रक्षा सदा धर्मधान रूप मजबूत किवाड़ों से भी बहुत अच्छी तरह होती रहती है (अज्झांदणगफलिहं इसकी रक्षा के निमित्त इन किवाडों में मजबूती लाने वाला अर्गला जैसा अध्यात्म-सद्भाव वहां काम करता है। (सनाबद्धोच्छइयदुग्गइपहं ) यह ब्रह्मचर्य अपने पालक के दुर्गतिमार्ग को सर्वथा रोक देता है, (सुगइ४।२४ तेने मी अपियसित शव्यु छ. “ तबसंजममूलदलियणिभं” त५ मने सयममा ब्रह्मयर्थः भूगधन समान छ. "चमहब्वयसुरक्खियं" જે રીતે પાંચ પુરુષેની વચ્ચે રહેતે પુરુષ સુરક્ષિત રહે છે, તે જ પ્રમાણે मा प्रभय ५४ पांय महाप्रतानी पश्ये २हेत वाया सुरक्षित छ. “ समिइगुत्तिगुत्तं "झा ध्यो समिति मावि पाय समितिमाथी बने भनेःशुति माह ત્રણ ગુપ્તિથી પણ તેનું સદા રક્ષણ થતું રહે છે, તે કારણે તે સમિતિ અને गुलियोथी या गुत-सुरक्षित वायुछे. तथा " झाणवर कवाडसुक्य रक्खणं " તેનું રક્ષણ હંશા ધયે ધ્યાનરૂપી મજબૂત કમાડેથી પણ ઘણું સારી રીતે शते थया ४२ छे “ अण्झप्पदिण्णफलिहं" तेनी २क्षाने निमत्त ते मामा મજબૂતી લાવનાર આગળીયા જેવું અધ્યાત્મ-સાવ ત્યાં કામ આપે છે. " सन्नद्धबद्धोच्छइयदुनाइपहं” मा प्राय तेनु सेवन ४२नारन गतिमाने For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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