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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६ अदत्तादान के तीस नामों का निरूपण २६४-२६९ ४७ पञ्चम अन्तरगत तस्करों (चोरों) का वर्णन २७०-२७५ ४८ परधनलुब्ध राजाओं के स्वरूप का निरूपण २७६-२८२ ४९ परधन में लुब्द्ध राजाओं के संग्राम का वर्णन २८३-२९६ ५० अदत्तादान (चोरी) के प्रकार का निरूपण २९७-३०१ ५१ सागर के स्वरूप का निरूपण ३०२-३०६ ५२ तस्कर के कार्य का निरूपण ३०७-३१७ ५३ अदत्तादान के फल का निरूपण ३१७-३२२ ५४ चोर लोक क्या फल पाते है उनका निरूपण ३२२-३३० ५५ अदत्तग्राही चोर कैसे होकर कैसे फल को पाते है उनका निरूपण ५६ अदत्ताग्राही चोर जिस फल को पाते है उसका निरूपण ३४७-३५४ ५७ अदत्तग्राही चोर की परलोक में कौन गति होती है उनका निरूपण ३५४-३६० ५८ जीव ज्ञानावरण आदि अष्टविध कर्मों से बंधदशाको प्राप्तकर संसारसागर में रहते हैं इस प्रकार का संसारगागर के ___ स्वरूप का निरूपण ३६०-३७७ ५९ किस प्रकार के अदत्ताग्राही चोरों को किस प्रकार का फल मिलते है उनका निरूपण ३७८-३८६ ६० तीसरे अध्ययन का उपसंहार ३८७-३९० चोथा अध्ययन ६१ अब्रह्म के स्वरूप का निरूपण ३९१-३९५ ६२ अब्रह्म के नामों का और उसके लक्षणों का निरूपण ३९५-४०० ६३ मोह से मोहित बुद्धिवालों से अब्रह्म के सेवन के प्रकारों का निरूपण ४००-४०३ ६४ चक्रवर्त्यादिकों का और उनके लक्षणों का वर्णन ४०३-४१९ ६५ बलदेव और वासुदेव के स्वरूप का निरूपण ४१९-४४३ ६६ अब्रह्म सेवी कौन होते है ? उनका निरूपण ४४३-४४१ For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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