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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३ नारकीय जीव क्या २ कहते हैं वह वर्णन १०६-१०८ २४ परमाधार्मिक नारकीय जीवों के प्रति क्यार करते है उनका कथन १०९-११० २५ वेदनाओं से पीडित नारक जीवों के आनंद का निरूपण १११-१.१७ २६ परमाधार्मिकों के द्वारा की गई यातनाओं के प्रकार का निरूपण ११७-११८ २७ यातना के विषय में आयुधों (शस्त्रों) के प्रकारों को निरूपण ११९-१२१ २८ परस्पर में वेदना को उत्पन्न करते हुए नारकी यों कि दशा का वर्णन १२१-१२७ २९ नारक जीवों के पश्चात्ताप का निरूपण १२८-१३० ३० तिर्यग्गति जीवो के दुःखों का निरूपण १३१-१३६ ३१ चतुरिन्द्रिय जीवों के दुःख का निरूपण १३७-१३८ ३२ त्रिन्द्रिय जीवों के दुःख का निरूपण १३८-१३९ ३३ द्विन्द्रिय जीवों के दुःख का वर्णन ३४ एकेन्द्रिय जीव के दुःख का वर्णन . १४१-१४४ ३५ दुःखों के प्रकार का वर्णन १४५-१५१ ३६ मनुष्यभव में दुःखों के प्रकार का निरूपण १५२-१६३ दूसरा अध्ययन ३७ अलीकवचन का निरूपण १६४-१६८ ३८ अलीकवचन के नाम का निरूपण १६८-१७४ ३९ जिस भाव से अलीक वचन कहा जाता है उसका निरूपण १७४-१७९ ४० नास्तिकवादियों के मत का निरूपण . १८०-२०५ ४१ अन्य मनुष्यों के मृषाभाषण का निरूपण २०६-२१४ ४२ मृषावादियों के जीव घातक वचन का निरूपण २१५-२४१ ४३. मृषावादियों को नरक प्राप्तिरूप फलमाप्ति का वर्णन २४२-२५२ ४४. अलीक वचन का फलितार्थ निरूपण २५३-२५६ .... .. तीसरा अध्ययन ४५ अदत्तादान के स्वरूप का निरूपण २५७-२६१ For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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