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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ** www.kobatirth.org नव्याकरणसूत्रे " कमलनालतन्तुश्च तद्वद्धवला दन्तश्रेणी-दन्तपक्तिर्येषां ते तथा अखंडदन्ताः = परिपूर्णदन्ताः ' अफुडियता' अस्फुटितदन्ताः अनुपहतदन्ताः अविरलदन्ताः= अच्छिद्रदन्ताः सुधनदन्ता इत्यर्थः ' सुगिद्धदंता ' सुस्निग्धदन्ताः 'अरुक्षदन्तवन्तः सुजायदन्ता' सुजातदन्ताः = सुसंस्थितदन्ताः एगदंत से डिब्बअगदंदा ' एकदन्तश्रेणिरिव अनेकदन्ताः येषां द्वात्रिंशहस्त अपि सुलिवादेकदन्तवद्दृश्यन्ते इत्यर्थः । ' हुबह नितोय तत्ततवणिज्जरच तळतालुजीदा हुतवह निर्मातधौततततपनीयरक्ततलतालुजिह्वा = दूतरहेन = दहिना निर्मात = तापितं धौतं = विशोधितं तप्तं च यतपनीयं सुवर्ण तेन तुल्यं रक्त रक्त तालु 3 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नदी जल आदि के फेन जैसी, श्वेतपुष्पविशेष जैसी, जल की बिन्दु जैसी, तथा मृणालिका कमल नाल के तन्तु जैसी धवल होती है ( अखंडता ) तथा इनके दांत परिपूर्ण होते हैं - ( अकुडिवदंना) तथा ये अस्फुटित दांतोवाले होते हैं- उबड़ खाबड़ इसके दांत नहीं होते हैं। और न टूटे फूटे ही होते हैं ( अविरलता ) तथा इनके दांत अच्छिद्र होते हैं - दूर २ नहीं होते हैं। अर्थात् परस्पर में एक दूसरे दांत के साथ मिले हुए रहते हैं । तथा ( सुद्धिना ) ये दांत इनके रूक्षा से विहीन होते हैं अर्थात् चिकने होते हैं (सुजाव देना) बहुत अच्छी तरहसे ये संस्थित-मडों में गढ़े हुए रहते हैं (एगदंन सेटिव्व अगदंना) यद्यपि ये दांत इनके बत्तीस ही होते हैं फिर भी परस्पर में सुष्टि होने के कारण एक दांत की तरह ही दिखते हैं तथा (हुयवहनितधोयतत्तवणिज तताउजी ह) जिनको तालु एवं जिला बह्नि से पाये गये 66 6 जिन्हु भेवा, तथा उभजनादाना तंतू देवी, धवस होय छे. " अखंडता " તેમના દાંત પરિપૂર્ણ હાય છે. આછા કે વધારે હાતા નથી अकुडियदता " તેમના દાંત અસ્ફુટિત હાય છે—પાલાણ વાળા હાતા નથી. અને તૂટેલા પણુ होता नथी. " अविरलद'ता તથા તે દાંત પાસે પાસે હાય છે. દૂર દૂર હાતા નથી. એટલે કે પરસ્પર એક બીજા સાથે અડકીને " રડેલા હૈય છે, તથા 66 सुवाणा होय छे. 'सुणिद्धता " तेभना में हांत उक्षताथी रहित गेटवे " सुजाता " ते घड़ी सारी रीते पेढांमां रडेला होय छे. " एगदंत सेटिव्व अगदता " ने तेमने मत्रीस हांत होय छे, छतां पशु परस्पर सेवी रीते અડોઅડ આવેલા હોય છે કે તે એક દાંત હોય તેવા દેખાય છે. તથા वर्द्धितोयतत्ततणिज्जरत्ततलतालुजोहा " भेमनुं ताज भने कल હૈય છે. તથા આગમાં તપાવેલ શુદ્ધ સુવર્ણુના જેવાં લાલ સપાટી વાળા For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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