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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२८ प्रश्नव्याकरणसूत्रे हस्तरेखादीनि सामुद्रिकशास्त्रोक्तानि, तथा व्यञ्जनानि चमपतिलकादीनि गुणाः= शौर्यादयस्तैरुपेताः युक्तः, 'माणुम्माणपमाणपडिपुण्या सुजायसव्वंगसुंदरंगा' मानोन्मानप्रमाणप्रतिपूर्णसुजातसर्वाङ्गसुन्दराङ्गाः = मानोन्मानः प्रमाणैः = तत्र मानं-शरीरभारः, उन्मानं-शरोरोच्छ्रयः, प्रमाण-समुचितशरीरावयववत्त्वं, तैः प्रतिपूर्णानि=सुजातानि=सुलुाया समुत्पन्नानि सर्वाण्यङ्गानि अवयवा यस्मिन् तदेवं विधं सुन्दरमङ्ग-शरीरं येषां ते तथा सकलसुलक्षणलक्षितसुपुष्ट सत्रमाणसुन्दरशरीरा इत्यर्थः 'ससिसोमागारा' शशिसौम्याकारा-चन्द्र-वत्सौम्याकृतिसम्पन्नाः, 'कता' 'कान्ताः कमनीयाः 'पियदसणा' प्रियदर्शना:-मनोजरूपाः 'अमरिसणा' अमर्षणः = अत्याचाराऽसहिष्णकः ' पयंडदंडप्प पारगंभीरदरिसणिज्जा' स्नेहशील होते हैं (सरण्णा) शरणागतकी रक्षा करते हैं ( लक्खणवंजग गुणोववेया) जो सामुद्रिक शास्त्रोक्त रेखा आदि शुभचिन्होंसे, तथा मषा तिलक आदि शुभ व्यंजनोंसे एवं शौर्यादिक सद्गुणांसे युक्त होते हैं माणुम्माणपमाणपडिपुण्णा सुजाय सव्वंगसुंदरंगा) शरीर भाररूप मानसे, शरीरकी ऊँचाई रूप उन्मानसे तथा समुचित शरीरावयवरूप प्रमाणसे, प्रतिपूर्ण, एवं सुन्दर रूपवाले समस्त अवयव जिसमें हैं ऐसे सुहावने शरीर से जो युक्त होते हैं अर्थात् उनका शरीर समस्त सुलक्षणों से युक्त, सुपुष्ट और प्रमाणोपेत होने से पूर्ण सुन्दर होता है, (ससिसोमागारा ) जिनको आकृती चंद्रमा के जैसी सौम्य होती है, ( कंता) जो सबके लिये बड़े प्रिय लगते हैं ( पियदंसणा) उनका दर्शन मन को बहुत अधिक आहाद जनक होता है ( अमरिसणा) जो अत्याचार को सहना बहुत ही बुरा मानते हैं-अर्थात्-जो अत्याचार को सहन नहीं २ २क्षा ४२ना खाय छ, “ लक्खणवंजणगुणोववेया" वो सामुद्रि ओत રેખા આદિ શુભ ચિન્હોથી તથા મષા તિલક આદિ શુભ વ્યંજનોથી અને शौर्या&ि सगुणेथी युत सय छ, “ माणुम्माणपमाण पडिपुन्नासुजायसव्वंगसुंदरगा” शरीरमा२ ३५ भानथी, शरी२नी या३५ भानथी, तथा समाएर શરીરવયવરૂપ પ્રમાણથી, પ્રતિપૂર્ણ અને સુંદર શરીરથી જે યુક્ત છે, એટલે કે તેમનું શરીર સમસ્ત સુલક્ષણે વાળુ, સુપુષ્ટ અને સપ્રમાણ હોવાથી સંપૂર્ણ शते सु४२ खोया छ, “ ससिसोमागारा" भनी ति यन्द्रमान २वी सौम्य सोय छे, “ कता" के सौने घणु र प्रिय दाणे छ. “ पियदसणा" भना शान भनने अत्यंत मानहाय खोय छे. " अमरिसणा" के सत्यायारोन સહન કરવું તે બહુજ ખરાબ ગણે છે એટલે કે અત્યાચારને સહન કરી શકતા For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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