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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२६ प्रश्नव्याकरणसूत्रे पुनस्ते कीदृशाः ? इत्याह- 'अपराजियं ' इत्यादिमूलम्-अपराजिय सत्तुमद्दणा रिउसहस्समाणमदणा साणुकोसा अमच्छरी अचवला अचंडामियमंजुलप्पलावा हसिय गंभीरमहरभणिया अब्भुवगयवच्छला सरण्णा लक्खणवंजणगुणोववेया माणुम्माणपमाणपडिपुण्ण सुजायसव्वंग. सुंदरंगा ससिसोमगारा कंता पियदंसणा अमरिसणा पयंड दंडप्पयारगंभीरदरिसीणजा तालज्झया उविज्झगरुल के ऊबलवगगजंत-दरिय-दप्पियमुट्ठियचाणूरचूरगारिट्टवसभ घाइणो केसरिमुहविष्फाडगा दरिय नागदप्पमहणाजमलज्जुणभंजगा महासउणिपूयणरिपू कंसमउडमोडगा जरासंधमाणमहणा तेहिय अविरलसमसंहियचंदमंडलसमप्पभेहिसूरमइिकवयं विणिमुयंतेहिं सप्पडिदंडेहिं आयवत्तेहिं धरिज्जतेहिं विरायंता ॥ सू० ७ ॥ टीका:--' अपराजियसत्तुमद्दणा अपराजितशत्रुमर्दनाः = अपराजितान्अन्यैरनिर्जितान् शत्रून् मईयन्ति ये ते तथा प्रवलशत्रुविनाशका इत्यर्थः, अतएव दूसरों का बल इनके समक्ष टिक नहीं सकता है, इसलिये ये अतिबल वाले होते हैं, तथा ( अनिहया) शत्रुओं के शस्त्रके आघात से ये वर्जित रहते हैं, ऐसे ये बलदेव और वासुदेव भी कामभोगों की तृप्तिसे विहीन बनकर ही मरणधर्म को प्राप्त करते हैं । सू० ६ ।। फिर वे कैसे होते हैं सो कहते हैं-'अपराजिय' इत्यादि । टीकार्थ-( अपराजिय सत्तुमद्दणा ) जो बलभद्र और नारायण આઘાતથી તેઓ રહિત હોય છે. એવા એ બળદેવ અને વાસુદેવ પણ કામजान तृतिथी २हित मनीने 1-AGN टीने मृत्यु पामे छे ॥ सू० ६ ॥ तम॥ य तेनु वधु वन ४२०i ४3 छ- “ अपराजिय" त्या ... .. टीथ ---" अपराजिय सत्तुमद्दणा” ते २५म अने नाराया, २५५२ilord For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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