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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२० प्रश्नव्याकरणसूत्रे वनंदणकरा सोलसरायवरसहस्साणुजायमग्गा सोलसदेवी सहस्सवरणयणहिययदइया णाणामणिकणगरयणमौत्तियपवाल धणधण्णसंचया रिद्धिसमिद्धकोसा हय-गय-रहसहस्ससामी गामागर-णगर-खेड-कब्बड-मडंब-दोणमुह-पट्टणा-समसंबाह-सहस्सथिमिय निव्वुयप्पमुइयजणविविहसहस्सनिप्पज्जमाणमेइ णी सरसरियतलाग-सेलकाणण-आरामुजाणमणाभिरामपरिमंडियस्स दाहिण-वेयड्ड-गिरिविभत्तस्सलवणजलपरिगयस्सछविह-कालगुणकमजुत्तस्स अद्धभरहस्स सामिया धीरकित्ति पुरिसा ओहबला अतिबला अनिया ॥ सू०६॥ टीका:-'भुज्जो' भूयः पुनःबलदेवा वासुदेवाश्च तेऽपि मरणधर्मगुपनमन्तीति सम्बन्ध कीदृशास्ते इत्याह- पवरपुरिसा' प्रवरपुरुषाः प्रधानपुरुषा ' महाबलपरकमो' महाबलपराक्रमाः महाबला महापराक्रमाश्च तत्र बलं-मानसिकशक्तिः पराक्रमः कायिकशक्तिः। 'महाधणुवियट्टगा' महाधनुर्विवर्तकाः-शाङ्गादिधनुर्विकर्षकाः, फिर इस प्रकारके कौन होते हैं ? सो कहते हैं- भुज्जो बलदेवा' इत्यादि । टीकार्थ-(भुज्जो बलदेवा वासुदेवा य) देखो-फिर जो बलदेव और वासुदेव होते हैं वे भी काम से अतृप्त ही मरणधर्म को प्राप्त होते हैं; इस प्रकार से इस सूत्र की व्याख्या में संबंध लगा लेना चाहीये। अब ये घलदेव और वासुदेव कैसे होते हैं इसका वर्णन सूत्रकार करते हैं (पवरपुरिसा ) ये बलदेव और वासुदेव प्रवर पुरुष-प्रधानपुरुष होते हैं (महाबलपरकमो) इनकी मानसिक शक्ति तथा कायिकशक्ति अनोखी होती है(महाधणुवियदृगा) शाङ्ग आदि धनुष्य के ये विकर्षक होते ___जी Anty डाय छ ? तो ४ ॐ ॐ " भुजोवलदेवा" त्यादि Astथ - "भुज्जो बलदेवा बासुदेवा य” qvil रे । मने वासुदेव। डाय છે તેઓ પણ કામથી અતૃપ્ત રહીને જ મૃત્યુ પામે છે, આ પ્રમાણે આ સૂત્રની વ્યાખ્યામાં સંબંધ સમજવાનું છે. હવે તે બળદેવ અને વાસુદેવ કેવા હોય છે, ते सूत्रा२ १३ छ“पवरपुरिसा” ते व अने वासुदेव प्रवर ५३५. प्रधान पु३५ सय छ महाबलपरक्कमो” तेमनी मानसि भने शारी२ि४ शति महमुत डाय छे " महाधणुवियदृगा" ते! शाङ्ग मा धनुष्यन वि७५ For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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