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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९० प्रश्नव्याकरणसूत्रे समरे भटा यत्र स तथा तत्र “आडवियछेयलाघवपहारसाहिए " आपतितछेक लाघवप्रहारसाधिते तत्र आपतिताः योद्धमुद्यता ये छेकाः निपुणाः भटाः, तेषां तत्कर्तृका इत्यर्थः, ये लाघवपहारा: चातुर्यपूर्णपहारास्तैः साधितो-निर्मितः यः स तथा तस्मिन् । तथा ' समूसियवाहुजुयले ' समुच्छ्रितवाहुयुगले समुच्छ्रितानि हर्षाधिक्यादूर्वीकृतानि वाहुयुगलानि भटैर्यत्र स तथा तत्र, तथा 'मुकट्टहासपुकंतबोलबहुले ' मुक्ताट्टहासपूत्कुर्वबोलबहुले = मुक्ताहासः कृतमहाहासध्वनयः, पूत्कुर्वन्ता नामनिर्देशपूर्वकं परमावयन्तो ये सुभटास्तेषां बोलाः कोलाहलः, स बहुलो यस्मिन् स तथा तस्मिन् । 'फुरफलग्गावरणगहियगयवरपत्थंतदरियभडखलपरोप्परपलग्गजुद्धगन्धियविकोसियवरासिरोसतुरियअभिमुहपहरंतछिण्णकरिकरविअंगियकरे ' स्फुरफलकावरणगृहीतगजवरमार्थयमानदृप्तभटखल-परस्परमलग्न युद्धगर्वितविकोशितवरासि-रोषत्वरिताभिमुखपहर-च्छिन्न-करिकर-व्यङ्गित-करे तत्र 'फुरफलगावरणगहिय ' स्फुरफलकावरणाः स्फुराः अस्त्रप्रतिघातनिवारकच. ममयपट्टविशेषाः, फलकानि=' द्वाल ' इति भाषा प्रसिद्धानि आवरणानि च कवचानि, तानि गृहीतानि=धृतानि यैस्ते तथा स्फुरकादि शस्त्रधारिणः, तथा ( आडवियछेयलाघवपहारसाहिए ) जो युद्ध करने के लिये उद्यत हुए ऐसे निपुण भटों के चातुर्य पूर्ण प्रहारों से निर्मित किया गया है, (समूसियवाहुजुयले ) तथा जिसमें हर्षित बने हुए भट हर्ष की अधिकता से अपने २ पाहुयुगलों को ऊपर उठा रहे हैं ( मुक्कट्टहासपुकंतयोलबहुले) तथा जिसमें सुभटजनों की महाहास्यध्वनि द्वारा एवं दूसरों को नाम निर्देशपूर्वक बुलाने के शब्दों द्वारा बहुत कोलाहल मचा रहता है तथा जिसमें योद्धागण (फुरफलगायरणहिय) अस्त्रप्रतिघातको निवारण करनेवाले चर्ममय पविशेषोंको, फलकोंको ढालोंको लिये रहते हैं, तथा कवच आदि आवरणोंसे सज्जित रहाकरते हैं, तथा (गयवरपत्थंत) जिसमें " आडवियछेयलाघवपहारसाहिए " 2 युद्ध ४२वाने तैयार थये। मेवा निशु सुभटोना यातुर्य पूर्ण प्राथी युद्धत छ “ समूसियबाहुजुयले ” तथा જેમાં આનંદિત બનેલા સુભટે આનંદની અધિકતાથી પિત પિતાની ભુજાઓ यी ४री २९८ छ. "मुक्कट्टहासपुकंतबोलबहुले” तथा मा सुखटाना મુક્ત હાસ્યને વનિ તથા બીજાને નામ દઈને બેલાવવાના શબ્દો દ્વારા ભારે साहस भया २यो छ, तथा भां योद्धायानो समूह " फुरफलगावरणगहिय " शखोना पाने शेवाने भाटे यम भय ५४ विशेषोने, सोने-हासाने धार! 3रे छ. तथा मत२ मा सावरणेथी स४२४ २७ छ. तथा “ गयव. For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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