SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 338
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुवशिनी टीका अ०३ सू०७ सग्रामवर्णनम् पुनः कीदृशे संग्रामे ? इत्याह ' वगंतं ' इत्यादि। मूलम्-वग्गंततुरंगरहपहावियसमरभडे आवडियछेयलाघवपहारसाहिए समूसियवाहुजुयले मुक्कट्टहासपुक्कंतबोलबहुले, फुरफलगावरणगहियगयवरपत्थंतदरियखलभडपरोप्परपलग्गजुद्धगवियविक्कोसियवरासिरोसतुरियअभिमुहपहरंतछिण्णकरिकरविअंगियकरे, अवइद्धनिसुट्टभिन्नफालियपगलियरुहिरकयभूमिकद्दमचिलिचिल्लपहे कुच्छिदालियगलियनिब्भेलियंतफुरफुरंतविगलमम्महयविगयगाढदिण्णप्पहारमुच्छियसलंतविभलवि. लावकलुणे, हयजोहभमंततुरगउद्दाममत्तकुंजरपरिसंकिय जणणिब्बुक्कछिपणज्झयभग्गरहवरनसिरकरिकलेवराकिण्गपडियपहरणविकिन्नाभरणभूमिभागे नचंतकबंधपउरे, भयंकरवायसपरिलित्तगिद्धमंडलभमंतछायंधयारंगभीरे ॥ सू० ७॥ टीका-" वग्गंततुरंगरहपहावियसमरभडे ' बलात्तुरंगस्थप्रधावितसमरभटे तत्र बलान्तः हेषमाणाः ये तुरगाः अश्वाः रथाः तैः प्रधाविताः = वेगेन नीताः किया जा रहा है ऐसे संग्राम में कितनेक राजा उतरते हैं ऐसा संबंध यहां लगा लेना चाहिये। सू०६॥ फिर कैसे संग्राम में उतरते हैं सो कहते हैं- वग्गंत तुरंग' इत्यादि। टीकार्थ- ( वग्गंततुरंगरहपहावियसमरभडे ) हणहणाट करते हुए घोड़ों से एवं रथों से जहां पर जल्दी २ भट पहुँचाये जा रहे हैं, तथा હીન કરવામાં આવી રહ્યું છે, એવા સંગ્રામમાં કેટલાક રાજાઓ ઉતરે છે, એ સંબંધ સમજી લેવાને છે સૂવા ते तेवा सयाममा उतरे छे तेनु वधु १ ४३ -- " वग्गंत तुरंग" त्यादि. साथ-" वगंततरंगरहपहावियसभरभडे " डाटी ४२ता घा.. ઓથી અને રાની મદદથી જ્યાં જલ્દીથી સૈનિકોને મેકલાઈ રહ્યા છે, તથા For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy