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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७८ प्रश्नव्याकरणसूत्रे सैन्यैः ‘उच्छरंता' आस्तृण्वन्तः प्रतिपक्षसेनामाच्छादयन्तः, 'अहिभूय ' अभिभूय आक्रमणेन शत्रुसैन्यं पराजित्य हठात् 'परधणाई' परधनानि हरन्ति ।।०४।। तथान्ये राजादयो यथा परधनादीन्यपहरन्ति तदाह-'अबरे ' इत्यादि मूलम्-अवरे रणसीसलद्धलक्खा संगाम अइवयंति, सण्णद्धबद्धपरियरउप्पाडियचिंधपट्टगहियाउहपहरणा माढीवरवम्मगुंडिया, आविद्धजालिया कवयकंडगिया, उर. सिरमुहवंद्धकंठतोणा, पासियवरफलगरइयपहकरसरभस खरचावकरकरंचियसुनिसियसरवरिसवडकरगमुयंतघणचं. डवेगधारानिवायमग्गे, अणेगधणुमंडलग्गसंधियउच्छलिय सत्ति--कणग--वामकर--गहिय--खेडग--निम्मल--- निकिट्ठ-खग्ग-पहरंत-कुंत-तोमर-चक्क-गया-परसु-मुसल -लंगल-मूल-लउड-भिडिपाल-सब्बल-पट्टिस-चम्मेट्रघण-मोट्ठिय-मोग्गरवर-फलिह-जंत पत्थर-दुहण-तोण कुवेणी-पीढाकलिए ॥ सू० ५॥ टीका-'अवरे' अपरे केचित् नृपाः 'रणसीसलद्धलक्खा' रणशीर्षलब्धलक्ष्याः रणशी-संग्रामशिरसि लब्धलक्ष्याः -वैरीवेधने-सिद्धहस्ताः सन्तः स्वयमेव 'संगाम' आच्छादित करते हुए ( अहिभूय ) अपने आक्रमणों से उसे पराजित करके ( परघणाई ) परधन को ( हरंति ) हरण करते हैं। सू०४॥ जो अन्य राजादिक पर के धन आदि हरण करते हैं उनको कहते हैं-' अवरे' इत्यादि टीकार्थ-(अवरे ) कितनेक राजा ( रणसीसलद्धलकवा) जो रणशीर्षलब्ध लक्ष्यवाले होते हैं-वैरी को मारने में सिद्ध हस्त होते हैं प्रतिपक्षीमा अन्यने “ उच्छरंता" घरी ने “अहिभूय " पाताना मसाथी तेने उरावीने “ परधणाई" ५२धन " हरंति " ९२९] ४२ छ । सू. ४॥ જે બીજા રાજાદિકે પરધન આદિનું હરણ કરે છે તેમનું વર્ણન કરતાં सूत्रा२ ४ छ-" अवरे " त्याह टी -“अवरे" old सा २सम्मे। "रणसीसलद्धलक्खा" २ २९शी. MA५२क्ष्य हाय दुश्मननी उत्या ४२वामा निपुण डाय छ “ संगाम For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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