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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुदर्शिनी टीका अ० ३ सू० ४ परधनलुब्धनृपस्वरूपनिरूपणम् २७७ अन्यजनपदान् देशानित्यर्थः परधणस्स कए परधनस्य कृते परद्रव्यग्रहणार्थम् 'अहिहणंति' अभिघ्नन्ति आक्रमन्ति आक्रमणं कुर्वन्ति इत्यर्थः। तथा 'चाउरंगमसत्तवल समग्गा' चतुरङ्गसमस्ावलसमग्राः चतुर्भिरङ्गैः = गजरथाश्वपदातिरूपैः सेनाऽवयवैः समस्त सम्पूर्ण रलं-सैन्यं तेन समग्राः=युक्ताः चतुरङ्गसेनायुक्ताः 'निच्छियवरजोहजुद्धसद्धा य’ निश्चितवरयोधयुद्धश्रद्धाश्र-तत्र निश्चितैः निर्धारितैः स्थायिरूपेण नियुक्तनिश्चयवद्भिर्वा वर्ग प्रशस्तैः योधैः भटैर्यद् युद्धं तत्र श्रद्धा प्रेमादरो येषां ते तथा ' अहमह 'मिति दप्पिएहिं ' अहमहमितिदपि तैः= अहमेवैकवीरः' इत्येवं दर्पितः = गस्तैिः 'सेन्नेहिं ' सैन्येः 'संपरिखुडा' सम्परिटताः सनद्धाः साजीभूता ‘पउमसगडमइचक्कसागरगरुलबहादिएहिं ' पद्मशकटमचीचक्रसागरगरुडव्यूहादिकैः = पद्माकारव्यूहशकटव्यूहमूचीव्यूहचक्रव्यूहसागरव्युहगरुडव्यूहादिकाः सैन्यर वनाविशेषास्ते विद्यन्ते येषु तैस्तथाभूतैः, 'अणीएहिं ' अनी कैः(लुद्धा) लुब्ध होकर ( परधणस्स कए) दूसरों का धन लेने के लिये (परविसए ) दूसरे राजाओं के देशों के ऊपर ( अहिहणंति ) आक्रमण करते हैं, तथा ( चाउरंगसमत्तबलसमग्गा ) गज, रथ, अश्व एवं पदाति रूप चार अंगों वाली सेना से युक्त एवं (निच्छियवरजोहजुद्धसद्धा य) स्थायी रूप से नियुक्त किये हुए अथवा अटल निश्चय से युक्त हुए ऐसे प्रशस्त योद्धाओं के साथ युद्ध करने में आदरभाव वाले और ( अहमहमिति दपिएहिं ) " मैं ही एक वीर हूं" इस प्रकार के गर्व वाले ( सेन्नेहिं ) सैन्य से (संपरिबुडा ) परिधृत-युक्त होकर (पउमसगड मइचक्कसागरगरुलचूहादिएहिं ) पद्माकार व्यूहवाले, शकटव्यूह वाले, सूचीब्यूहवाले, चक्रव्यूहवाले, सागरव्यूहवाले, एवं गरुडव्यूह आदि वाले (अणीएहिं ) सैन्य से प्रतिपक्षी के सैन्य को ( उच्छरंता) थने “ परधणास कए " ilonनु धन प्रास ४२वाने भाटे "परविसए" bilod सतना प्रदेश ५२ " अहिहणंति” मामा ४२ छ, तथा " चाउरंग समत्त. - बलसमग्गा" हाथी, २५, म पने पायो यतुगी सेना सहित भने " निच्छियवरजोहजुद्धसद्धा य" स्थायी रीते ४२ मा निश्चयवाणा અને યુદ્ધ કરવામાં આદરભાવ રાખનારા પ્રશસ્ત દ્ધાઓની સાથે અને " अहमहमिति इपिएहिं" " २४ वीर " २ १२ वाणा "सेन्नेहि सैन्यथी “संपरिखुडा" परिश्त-युत ने “पउमसगडसूइचक्कसागरगरुलल्लूहादिपाह" ५२ व्यूडाणा, २४८०यूया, सूयी-यूप२२व्यूड पाणा, सागर च्यूडकाण: मने १२७ २माहि न्यूडा, "अणीएहिं " सैन्यथा For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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