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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुदर्शिनी टीका अ. २ सू० २ अलोकवचननामानि ____टीका-' तस्स य' तस्य च मृषावादस्य द्वितीयास्रवद्वारस्य 'गोणाणि' गौणानि-गुणनिष्पन्नानि 'तीसं ' त्रिंशत् ‘णामाणि' नामानि 'हुति' भवन्ति तं जहा' तद्यथा-(१) 'अलियं ' अलोकं-निष्फलं शुभफलवर्जितत्वात् , (२) 'सद' शठं-कपटिजनसमाचरितत्वात् , (३) ' अणज्ज' अनार्यम्-अनार्यजनोक्त___“जारिसओ" इसे प्रथम द्वार में मृषावाद का स्वरूप कहा गया है, अब सूत्रकार 'जं नामा' इस दूसरे द्वार में इसके कौन २ से नाम हैं वह कहते हैं-'तस्स य णामाणि' इत्यादि । टीकार्थ-(तस्स) इस द्वितीय आस्रवद्वार रूप मृषावाद के (गोणाणि) गुण निष्पन्न (तीसं ) तीस ( णामाणि ) नाम (हुँति ) हैं (तंजहा) वे इस प्रकार हैं-(अलियं १, संदं २, अणज्ज ३,मायामोसो ४, असंतकं५, कूडकवडमवत्थुगं ६, च निरत्ययमवत्थयं ७ च, विदेसगरहणिज्ज ८, अणज्जुकं ९, ककणा १० य, वंचणा ११ य, मिच्छापच्छाकडं १२ च, साइ १३, उस्सुत्तं १४, उक्कूल १५ च, अहँ १६, अब्भक्खणं १७ च, किविसं १८, वलय १९, गहणं २० च, मम्मणं २१ च, नूमं २२, नियई, २३, अप्पच्चओ २४, असंयमओ २५, असच्चसंघत्तणं २६, विविक्खो २७, उवहियं २८, उवहि असुद्धं २९, अवलवो ३० त्ति ) यह असत्यभाषण शुभफलों से रहित होने के कारण अलीकफल रहित होता है इसलिये इसका नाम अलीक है १। कपटीजनों के द्वारा यह अपना काम " जारिसओ" २प्रथम द्वारभां भृषावाह-मसत्य वयन-नु-१३५ . पामा साव्यु छ. वे सूत्रा२ " जनामा" से पहाथी २३ यता भीत द्वारमा तेन यां या नाम छ ते सतावे छ-" तस्स य णामाणि' त्यादि "-तरस' ! जी भासपा२३५ भूषावाहनi" "गोणाणि" गुणानुसार " तीस" नीस —णामाणि" नाम " हुति" छे. " त जहाँ " ते म. प्रमाणे छे. अलिय १, संढ २, अणज्ज ३, मायामोसो४, असतकं५, कूउकवडमवत्थुगं६, च, निरत्थयमवत्थय७, च विदेसगरहणिज्ज ८, अणज्जुकं ९, ककणा १० य, वंचणा ११ य, मिच्छापच्छाकडं १२ च, साइ १३, उस्सुत्तं १४, उस्कूल १५ च, अई १६, अभक्खणं १७ चा किब्बिस १८, वलय १९, ग इणं २० च, मम्मर्ण २१ च, नूम २२, निरई २३, अप्पच्चओ २४, असंयमओ २५, असच्चसंघयणं २६, विविक्खो २७, उवहिय' २८, उवहि असुद्ध'२९, अवलो वो ३० ति” (१) ते असत्य भाषा] शुम जोथी २डित पाने १२९५ "अलीक" ५२डित राय छ तेथी तेनु नाम “अलीक" ५७युछे (२) प्र-२२ For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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