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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुदर्शिनी टीका अ० १ सू० २९ यमाः नारकान् प्रति किं कुर्वन्ति ! १०९ निर्दयः-दयारहितः, 'असि' भवसि ?, मा देहि मे' मा 'पहारे' प्रहारान् मां मा ताडयेत्यर्थः। 'अस्सासेउँ' उच्छ्वसितुंश्वासमात्रं ग्रहीतुं 'मे' मा 'मुहुत्तं' मुहूर्त-क्षणमात्रं देहि, येन श्वासमात्रमपि मुखमनुभवामीति भावः, 'पसायं' प्रसादम्-अनुग्रहं 'करेह ' कुरुत 'मा रुसह' मा रुष्यत-क्रोधं मा कुरुत । वीसमामि ' विश्रमामि-किश्चित्कालं विश्रामं करोमि अतः 'मे' मम 'गेविज्ज' ग्रैवेयकं-श्रीवाबन्धनं 'मुयह ' मुश्चत त्यजत यतो हि-अहं 'मरामि' म्रिये, गाढं-अत्यधिक 'तण्डाइओ' तृष्णादितः पिपासाकुलितोऽस्मि मे मा 'पाणियं' पानीयं जलं देहि ।। सू० २८ ।। एवं नारकैः कथिते सति यमपुरुषाः यत् कुर्वन्ति तदाह-'ताहे तं' इत्यादि । मूलम्-ताहे तं पिय इमं जलं विमलं सीयलंति घेत्तुण य नरयपाला तवियं तउयं से दिति कलसेण अंजलीस दट्टण य तं पवेवियंगोवंगा अंसुपगलं तपप्पुयच्छा छिण्णा तण्हा इयम्ह कलुणाणि जपमाणा विपेक्खंता दिसोदिसि अत्ताणा असरणा अणाहा अबंधवा बंधुविप्पहीणा विपलायंति य मियविववेगेण भउठिवग्गा, घेत्तण वला पलायमाणाणं निरणुकंपामुहं विहाडेउं लोहदंडेहि कलकलंण्हं वयणसि छुभंति केइ जमकाइया हंसता॥२९ कठोर और निर्दय हो रहे हो, (मा देहि मे पहारे) मुझ पर प्रहार मत करो (अस्सासेउं मुहुत्तं मे देहि ) मुझे कम से कम मुहूर्त-क्षण मात्र श्वास तो लेने दो, (पसायं करेह) मेरे ऊपर दया करो, (मा रुसह) मुझ पर क्रोध मत करो, (वीसमामि) में कुछ कालतक विश्राम करना चाहता हूं-अतः ( गेविजं मुयह मे ) मेरी ग्रीवा के बंधन को तुम छोड दो, देखो ( गाढं तण्हाइओ अहं ) गहरी प्यास से व्याकुल होकर मैं मर रहा हूं अतः मेरे लिये ( देहि पाणियं) पीने को जल दो ॥सू. २८॥ 3 मनी २६॥ छ। १ "मा देहि मे पहारे" भा२! ५२ प्रडा न ४२१. “ अस्सासेउ मुहत्तं मे देहि " भने माछामा गाछी मे क्षए भाटे तो श्वास सेवा हो. "पसायं करेह " भा२। ७५२ ४या ४, "मा रुसह" भा७५२ ओध न ४२१, " वीसमामि" ई था। समय विश्राम ४२१॥ भाछुतो “गेविज मुयह मे" भारी भानुं धन तमे छ। हो, दु! “ गाढं तहाइओ अहं" मारे तृषाथी व्या पुण धन भी रह्यो छ. तो भने “देहि पाणियं " भावाने भाट १७ मा " ॥ सू. २८ ।। For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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