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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुदर्शिनी टीका अ० १ सू० २६ कुंभीदुःखनिरूपणम् प्रवचनानि-प्रतारणानि पखरोष्णसन्तप्तवालुका निकरानेकक्षणपरिक्रमणोपताप प्रदीपितपानीय पानातितृष्णस्य समुदञ्चजलवीचिरुचिमरीचिनिचयं जलाशदिश्य तत्र पानाय प्रेषणं, 'गच्छ तत्र ते पिता 'समागतः' इत्याद्यनेकविधः प्रवञ्चना इति भावः, खिसण विमाणणाणि ' खिंसनविमाननानिखिंसनानिजातिकुलोदिनामनिर्देशपूर्वकं निन्दनानि, अत एव विमाननानि तिरस्करणानि 'विघुटपणिज्जणाणि ' विघुष्ट प्रणयनानि-विघुष्टानां="स्वकृतपापकर्मणां फलानि भुव" इत्यादिभिनिष्ठुरवचोनिसितानां प्रणयनानिबध्यस्थाननयनानि । एतानि कि हेतुकानि ? इत्याह-'वज्जसयमाइयाणि ' अवद्यशतमातृकाणिअवद्यशतमातृकाणि-अवद्यशतानि मन्दतीवादिपरिणामेन कृतानि पापशतानि, सपवंचणाणि य असत्य वस्तुविषयक आदेशरूप आज्ञा से उन्हें प्रतारित (ठगना) किया जाता है-वहां पर नारकीजन पहिले उस नवीन नारकी को प्रखर उष्ण से सन्तप्त वालुका पुंज की ऊपर अनेकवार घुमाते हैं। इससे उसकी गर्मी से उसकी प्यास अधिक से अधिक मात्रा में जय प्रदीपित हो जाती है तब उसे बनावटी जलाशय दिखलाकर वहां वे भेज देते हैं इस तरह उसे वहां वार २ प्रतारित किया जाना है “जाओ वहां तुम्हारा पिता आया है" इत्यादि अनेकविध वचनों द्वारा वे उसकी प्रवचना किया करते हैं । (खिसणविमाणाणि य) जाति, कुल आदि के नामनिर्देषपूर्वक उसकी वहां निंदा की जाती है । तिरस्कार किया जाता हैं। (विघुट्ठपणिज्जणाणि य ) " अपने किये हुए पापकर्मों का तुम फल भोगो" इत्यादि निष्ठुर वचनों से उसे निर्भत्सितकरके वध्य स्थानों पर लाया जाता हैं । ( वज्जसयमाइयाणि य) इस तरह नाना प्रकार के इन दुःखों को नरकों में मन्द, तीव्र आदि परिणामो द्वारा किये गये शूणी ५२ तेभने सामi मावे छ. " आएसपवंचणाणि य” असत्य वस्तु વિશેના આદેશ વડે તેમને ત્યાં ઠગવામાં આવે છે. ત્યાં નારકીજન પહેલાં તે નવીન નારકી ઓને પ્રચંડ ઉષ્ણુતાથી સારી રીતે તપેલી રેતી પર અનેક વાર ચલાવે છે. તેથી તેની ગરમીથી તેમની તૃષા જ્યારે વધારેમાં વધારે પ્રમાણમાં પ્રદીપ્ત થાય છે ત્યારે તેઓ તેમને બનાવટી જળાશય બતાવીને ત્યાં મેકલી દે छे, मा शते त्यां तेन वारपार प्रतारित राय छ-आवामा भाव छयो, ત્યાં તમારા પિતા આવ્યા છે” ઈત્યાદિ અનેક પ્રકારનાં વચને દ્વારા તેઓ તેની &iसी र्या ४२ . “ खिसणविमाणणाणि य" onति, गुण माहिना नामना निष शनतेनी त्या निहा ४२शय छ. ति२२४१२ ४२राय छे. “ विघपणिज्जणाणि य" " ते अरेस भानु तु मागव" i नि२ क्यनाथी तभनयम. जापान स्थान ५२ ६४ मत मावे छ. “ वज्जसयमाइयाणि य" मा રીતે પાપી જીવ મંદ, તીવ્ર આદિ પરિણામે દ્વારા કરાયેલ સેંકડે પાપને કારણે For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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