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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૦૨ प्रश्नव्याकरणेस्त्र णाणि' शाल्मलि तोक्ष्गाग्रलोहकण्टकाभिसारणापसारणानि शाल्मलि:=' सेमल' इति - ख्यातो वृक्षविशेषस्तस्य ये तीक्ष्णाग्रा लोहकण्टका इव कण्टकाः, तेषु अभिसारणापसारणानि च = कर्षगापकर्षणानि ' फालगविदारणाणि ' फालनानि-वस्त्रवत्स्काटनानि, विदारणानि-क्राचादिना काष्ठवद् द्वैधीकरणानि ' अवकोडगबंधणाणि' अवकोटकबन्धनानिधीवाया इस्तयोश्च पश्चाद्भागानयनेनबन्धनानि, ' लट्ठिसयताळणाणि ' यष्टिशतताड़नानि यष्टिशतैस्ताड़नानि, 'गलगबलुल्लंबणाणि ' 'गलकवलोल्लम्बनानि-गल एव गलकः कण्ठः, तस्मिन् बलात् बलपूर्वकम् उल्लम्बनानिक्षशाखादौ उद्घन्धनानि, ' मूलग्ग भेयणाणि य' शूलाग्रभेदनानि च शूलाग्रेग-शूलाग्रभागेन भेदनानि, शूलारोपणानि वा, 'आएस पवंचणाणि ' आदेशप्रवचनानि-आदेशेन-आज्ञया असत्यवस्तु विषयया उनका वह शरीर अर्पित किया जाता है, (सामलितिक्खग्गा-लोहकंटग अभिसारणा-पसारणाणि ) सेमर वृक्ष के लोहकण्टक के समान नुकीले कांटा के ऊपर उनका कर्षणापकर्षण किया जाता है उन्हें आगे पीछे खेंचा जाता है, (फालग विदारणाणि य) फालन-वस्त्र के समान फाड़ना और करोति आदि के द्वारा काष्ठ को तरह चोरना भी उनका वहां किया जाता है । ( अवकोडगयंधणाणि ) उनको ग्रीवा और दोनों हाथ पीछे के भाग की तरफ करके बांधे जाते हैं । ( लट्ठिमयताडणाणि य ) सैकडों लाठियों की उन पर वहां मार पडती है । (गलगवललंबणाणि य) जबर्दस्ती उनके गलों को वृक्ष की शाखा पर बांधकर लटकाया जाता है। (मूलग्गभेयणाणि य ) शूल के अग्रभाग से उनके शरीर का भेदन किया जाता है । अथवा शूली के ऊपर उन्हें लटकाया जाता है। (आए. तमना ते शरी२ मा ४२।५ छ. “सामलितिक्खग्गलोहकंटग-अभिसारणा -पसारणाणि य" सेभर वृक्षना सोना समान २०७२ ४iटा ५२ તેમનું કણાપકર્ષણ કરાય છે તેમને આગળ પાછળ ખેંચવામાં આવે છે. " फालणविदारणाणि य” त्या तेभने पनी म वाम मावे छ भने કરવત આદિ દ્વારા જેમ લાકડાને ચીરવામાં આવે છે તેમ તેમને પણ ચીરपाम भार छ “ अवकोडगबंधणाणि" तेभनी 1४ भने भने । पाछाना लामा २मावाने riyाम मावे छ. : लट्टिसयताडणाणि य" त्यां तेभने से सामान भार ५ छ. “गलगबललुबणाणि य” ने२ सभथी तमनi mi माधान वृक्षानी जियो ५२ तेमने सामने पाये छ," सूलगा भैयणाणि य" शूगनी भाषा तेभनi शरीर लेन ४२पामा भावे छे मथवा For Private And Personal Use Only
SR No.020574
Book TitlePrashnavyakaran Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1002
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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