SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शब्द रूप आकारान्त, इकारान्त, ईकारान्त, उकारान्त तथा ऊकारान्त शब्द ही प्राकृत में मिलते हैं। प्राकृत में ऋ, ऋ और ल नहीं हैं इसलिए ऋकारान्त शब्द प्राकृत में अर, आर और कभी-कभी उकार भी होते हैं । प्राकृत में व्यंजनान्त शब्द नहीं होता है । इसलिए व्यंजनान्त शब्द भी स्वरान्त हो जाते हैं। __ शब्द पलिंग, स्त्रीलिंग एवं नपंसकलिंग होता है। लेकिन विभक्ति प्रयोग में उन लिंगों की भिन्नता नहीं पायी जाती है । केवल नपंसकलिंग की प्रथमा एवं द्वितीया विभक्ति में अलग विभक्तियाँ लगती हैं। ऐसा स्त्रीलिंग शब्द में भी अलग विभक्तियाँ लगती हैं। नीचे शब्द के शब्दरूप दे रहा हूं। अकारान्त पलिंग शब्द का रूप वच्छ < वृक्ष, वत्स एकवचन वच्छो विभक्ति प्रथमा द्वितीया तृतीया वच्छ बहवचन वच्छा । वच्छे, वच्छा वच्छेहि, वच्छेहिं, वच्छेहिँ वच्छेण-वच्छेणं चतुर्थी पंचमी वच्छा, वच्छत्तो, वच्छाओ वच्छाउ, वच्छाहिं, वच्छाहिंतो वच्छत्तो, वच्छाओ वच्छाउ, वच्छेहि, वच्छाहिंतो, वच्छेहितो वच्छासुंतो, वच्छेसुतो वच्छाण-णं वच्छेस, वच्छेसं षष्ठी सप्तमी सम्बोधन वच्छस्स वच्छे, वच्छम्मि वच्छ, वच्छा, वच्छो वच्छा For Private and Personal Use Only
SR No.020568
Book TitlePrakrit Vyakaran Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaranjan Banerjee
PublisherJain Bhavan
Publication Year1999
Total Pages57
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy