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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १२ प्राकृत व्याकरण प्रवेशिका कभी ऐसा लगता है कि कुछ विभक्तियां ऐसी हैं कि ओ संस्कृत का तस् ( = तः ) प्रत्यय से आया हुआ है । जैसे वच्छाओ वास्तव में संस्कृत वृक्षत: रूप से आया है । इसलिए पंचमी की एक विभक्ति है ओकारान्त । जैसे वच्छाओ । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३. ध्वनि - परिवर्तन प्राकृत में ध्वनि का परिवर्तन दो तरह होता है । (१) स्वर का (२) व्यंजन का । स्वर में कुछ स्थलों पर ह्रस्व के स्थान पर दीर्घ और दीर्घ के स्थान पर ह्रस्व होता है । व्यंजन में भी कुछ-कुछ व्यंजन-ध्वनि का लोप होता है । कुछ-कुछ व्यंजन ध्वनि का परिवर्तन भी होता है । इस विषय में कुछ नियम सूत्र रूप में वर्णित हैं I : (क) स्वर वर्ण का परिवर्तन १. प्राकृत में संयुक्त वर्ण का पूर्व वर्ण ह्रस्व होता है अर्थात् संयुक्त वर्ण पूर्व अक्षर दीर्घ अर्थात् आ, ई, ऊ, होता है तब अ, इ, उ, हो जाता है । (क) आ-अ-आम्रम् - अम्बं, यथा- ताम्रम्-तम्बं ( ख ) ई - इ - मुनीन्द्रः मुणिन्दो, तीर्थम् - तिर्थं ( ग ) ऊ - उ - चूर्ण: चुण्णो, ऊर्मि - उम्मि २. यदि संयुक्त वर्ण का पूर्व वर्ण ए व ओ होता है तब ए व ओ का ह्रस्व रूप इ व उ होता है अर्थात् नरेन्द्रः- नरिन्दो, म्लेच्छः- मिलिच्छो । अधरोष्ठः-अहरुट्ठो, नीलोत्पलम् - नीलुप्पलं । ३. यदि संयुक्त वर्ण का पूर्व ए व ओ होता है तब उसी ए व ओ को हमलोग ह्रस्व मानेंगे अर्थात् संयुक्त वर्ण के पूर्व ए व ओ ह्रस्व हो जाते हैं । जैसे ग्राह्यं-गेज्झं, पिण्डं-पेंडं, तुण्ड-तोंडं, पुष्कर-पोक्खर । इन सभी उदाहरणों में यद्यपि ए, ओ लिखा गया है, पर ये ए, ओ ह्रस्व है । वस्तुतः ए, ओ दीर्घ है लेकिन संयुक्त वर्ण के साथ रहने के कारण ये हस्व हो गए हैं । ४. प्राकृत में संयुक्त वर्ण में एक का लोप होने पर पूर्व स्वर दीर्घ हो जाता है । यथा- पश्यति परसइ > पासइ, कश्यपः > कस्सवो > कासवो, विश्रामः > विस्सामो> वीसामो, मिश्रम् > मिस्सं मी, अश्वः > अस्सो > आसो, विश्वासः > विस्सासो> वीसासो, शिष्यः > सिस्सो > सीसो इत्यादि । ५. (क) ऋ वर्ण का प्राकृत में अ, इ, उ और रि होता है । यथ ऋ>अ। घृतम्-घयं, तृणम्-तणं, कृतम् - कथं, वृषभः- वसहो, मृगः-मओ इत्यादि । For Private and Personal Use Only
SR No.020568
Book TitlePrakrit Vyakaran Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaranjan Banerjee
PublisherJain Bhavan
Publication Year1999
Total Pages57
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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