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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३४ प्राशतङ्गणम् । - वषाणं अठहत्तरेहिं मत्रले बौहोत्तरं सत्ता बिस्मामे बिड ठाम ठाम भणि हौल मो महत्रो ॥ १८८ ॥ सिड पाए बिह बल सेस भणि एउप एको [प] उपप्रमौ ७८ तह बल ठाम धरि एरिसं हार। अठतीसे लड़ तच्छ तच्छ करणा बिमाम बे जंपित्री सुच्छंदो भण सेस पात्र णिउणो मोहद्द सो महो ॥ १८ ॥ असि ८० बलो चउ पात्र पात्र करण दिठ्ठाण किठ्ठाण गुरु चालीसह चारिसेण ४० लाथा दिवाण किठ्ठाणत्रं । एउ जोणी गण मझ्झ माझ मत्रले बोहोत्तरं सत्तो भणु मेसा दूध धंदु बंध सुरमो पंचाणु* मो सट्टो ॥१९॥ महलो पढमो बि गुंज महठी मोहद्द पंचाषणो इंकालो सब लंगु बेणुणु णखी हिंसा विचारित्रो। णिको हिसार मोर कररी बिंबारु बौहंसको उद्धंगो रुहिरामिणो मित्रपई संचारि मोहा मुणो ॥ १९१ ॥ कुंडो ककस जंपु गंड विकटो दंतारि तारित्रो मौणो भौमण बकरो भत्रकरो संगूर लौचारो। उद्धको कटणो गुरार ररबौ पपुंद फुक्कारित्रो एक्कक्के गुरु खोपि जूत्र खाऊ हो एवारिसो सहभो ॥ १८२ ॥ - [इति] शाई खप्रकरणम्। * [This metre is elsewhere described as मनेभविक्रीडितम. Vido Ghosha's Compendium, p. e -Ed.] For Private and Personal Use Only
SR No.020566
Book TitlePrakrit Paingalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandramohan Ghosh
PublisherCalcutta
Publication Year1902
Total Pages727
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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