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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मानसपैङ्गलम्। देह' भुजंगम अंत लहु तेरह बम पमाण । चउरासी चउ पात्र कल कंद छंदु बर जाण ॥ १४६९ ॥ दोहा। अहा, ण रे कंस जाणेहि हो एक बाला इ' मुहे" देबई पुत्त तो बंस कालाई । तहा गेण्ह कंसो जणाणंद कंदेण जहा इंति दिट्ठो णि णारि बिदेण॥ १४७९९ ॥ कंदः। नागेनामीतिर्भवति चतुरधिका सर्वपादेन ॥ ध्वनो बच्चादिस्त्रिकलस्त्रय गुरुलघू, शल्यो लघुः, तकारस्तगणः । (G). १४७ । न रे कंस जानीहि अहमेको बाल इति भवामि दैवकीपुत्रस्त्वदंशकालः । तथा ग्रहीतः कसो जनानन्दकन्देन यथा हेति दृष्टो निजनारोवन्देन ॥ हा इति शब्दं त्वेति शेषः। (). १४७ । कंदमुदाहरति, प रे इति । रे कंस तो बंस कालार - त्वदंशकालः देबई पुत्त-देवकीपुत्रः एक - एकः अदितीयइति यावत् बाला-- बालकः हो- भवामि इति मुहे-माण जाणेहि-न जानासि । इत्युक्वेति शेषः जणाणंद कंदेण - सकल १४। १ देहि (B). २ लह (C). R This sloka is found in MSS. (B & C), but not in the others.---Ed. १४०। १ जाणेषो (B), नाणेड (C). १ ख (A), हर (B), हौ (F). ३ एक (A, B & C). ४ बाला (A). ५ इक (A & C), ह (B). ( देवर (E & F). . काला (A). ८ गेड (A, B & C), गएषु (E). साकि (B), त्यि (C). १. दिडो (B & C). ११ टन्देण (E). १९१४९ (A). For Private and Personal Use Only
SR No.020566
Book TitlePrakrit Paingalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandramohan Ghosh
PublisherCalcutta
Publication Year1902
Total Pages727
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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