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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अथ अराहिरण (D) [जलहरणम्]। पञ्च' पढम पलइ जहिँ सुणहिर कमल मुहि दह बसु पुणु बसु विरइ करे सवपत्र मुणि दिगण दिन बिरम' सगण सिरि फणिबइ भण सुकइबरे । दह तिगुण करहि कल पुणबिठबजुअल इम परि परि टबुर चउ चरणा जइ पलइर कबहुर गुरु कबहु" ण परिहरु'५ बुहश्रण मणहरु जलहरणा'८ ॥ २०२४ ॥ २०० । प्रकारांतरेणाह, हारेति ॥ हारं सुप्रियं भण विप्रगणं ततो जोहनमंते संस्थापय त्रयोदश[विंशतिमात्राः दि[?]स्त्रिधा भिन्नपरौरः ॥ हारविप्रो विधा कार्यों इत्यर्थः । जोहलो रगणः ॥ (G). १०। किञ्च (E). . पढदू जद (B), पत्लइ जद (C), पावर कमसदि (D), पबन्द कलहि (F). ३ सुपर (C), विषच (D), मुणहि (E), विकच (F), ५ रस (B), ण (D). ५ कोच दिघवर (A), किच दिश्च दिव (B), किस दिच गण (C). पचन किश्च (A), परहि दिश्च (B), पर किच (C), परहिम (E). . सुकविबरे (B & C). ८ करह (B & C). ८ पुणुवि (C). १. ठवि (A), पर (D & F). ११ एम परि ठव (B, C & D), रम परि टवह (E), रम परि ठवड (F), ए short here. ११ परइ (D). १३ कहि (B & C). १४ कहवि (A). १५ परिहर (D). १६ बुहियण (A). १० मणहर (D). १८ जणहरम (B, D & F). १९९७ (A), . (F). For Private and Personal Use Only
SR No.020566
Book TitlePrakrit Paingalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandramohan Ghosh
PublisherCalcutta
Publication Year1902
Total Pages727
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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