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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२५ प्रावतपेङ्गलम् । जहा, धिक दलब थांग दलण तक दलण रिंगर, सं स्प मु कट' दिंग दुकट रंग चल तुरंगर। - धूलि धबल हक सबल पक्खि पबल पत्तिएर कण चलइ कुम्म ललइ भुम्मिए भरइ कित्तिए । २०११॥ हौर। (A, B & C). हौरकं सुकविः प्रेक्षते ॥ हारो गुरुर्विप्रचतुर्लघुस्तेन शबलो मिश्रः, तेन गुरु-लघुचतुष्टयरूपः षट्कलः कार्य इत्यर्थः ॥ अंकानां वामतो गत्या त्रयोविंशतिर्माचा इत्यर्थः ॥ (G). २०० । तदेव स्पष्टयति ॥ हारः सुप्रियो विप्रगणस्विर्भिवं । जोहलमन्ते संस्थापय, योविंशतिमात्र हौरम् ॥ (C). २०० । अथैनमेवार्थ दोहावृत्तेन प्रकटयति हारेति । हे सुप्रिय शिष्य पूर्व हारं गुरुं ततः विष्णगण - विप्रगणं चतुर्लघुकं गणं भण कथय, एवं तित्र बिध- वारत्रयविधानेनेत्यर्थः भिण मरौरभिन्नशरौरं भिन्नम् अन्यच्छंदोभ्यो विलक्षणं शरीरं यस्य तदित्यर्थः। अंते पादांते जोहलं- रगणं संठबहु - स्थापय, एवं तेहस मत्तत्रयोविंशतिमात्राकं होरं होरनामक वृत्तं भवतीति शेषः ॥ (E). २०१ । १, २ & ५ दरल (B & C). २ धाम (D). ३ दरण (D & F). . भक्त (B & C). ५ तरण (D & F). ६ दिगए (A), थांगर (B & C), रिंगची (E). . स कट (A), ण ल द गढ (D), नि कट (E). ८ हिंकट (A), लिंकठ (B), शकर (C), इकठं (D), दिकट (E). र तुरंगचो (E). १० दिम्ग मचल (A), सक्क सबल (C), डक सबल (D). ११ दरख (A), सेक्स (B), देक्स (C), वत्ति (D), पेक्स (E). १९ परण एत्तिए (A). १३ भुषण (A), भुम्म (B &C). १. कौतिर (C). १५ ९२ (A), २ (F). For Private and Personal Use Only
SR No.020566
Book TitlePrakrit Paingalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandramohan Ghosh
PublisherCalcutta
Publication Year1902
Total Pages727
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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