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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २७४ www.kobatirth.org प्राकृतपैङ्गलम् । अथ चुलित्राला छंद । (D). चुलिला जइ देह' किमु दोहा उप्पर मत्तह" पंचद्र । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पत्रपत्र उप्पर संबहु सुद्द कुसुमगण अंतह' दिज्जइ ॥ १६७ ॥ , I १६६ | उदाहरति । वर्षति जलं भ्रमति घनः गगने, मलयपवनो मनोहरणः कनकपोता नृत्यति विद्युत्, फुल्लिता नौपाः । प्रस्तर विस्तार हृदयः प्रियो निकटं नायाति ॥ प्रस्तर विस्तार इति काठिन्यद्योतनार्थम । (C). १६६ । मालामुदाहरति बरिसेति । घण - घनः मेघः गण - - गगने भमद - भ्रमति, जल जलं बरिस – वर्षति, मण ― - हरण - मनोहरः मिश्रल - शीतल: पबण - पवनः वातः वातीति शेषः, कण पिवरि - कनकपोता बिजुरि - विद्युत् एचनृत्यति, णौवा - नौपाः कदम्बा: फुलित्रा - पुष्पिताः । पत्थर बित्थर चित्रण - प्रस्तर विस्तीर्णहृदयः पिश्रणा - प्रियः णिश्रलं निकटे ए श्राबेद्र – नायाति ॥ (E). १६६ | यथा ॥ बरौति ॥ वर्षति जलं भ्रमति घनो गगने, शौतलः पवनो मनोहरः, कनकपौता नृत्यति विद्युत्, पुष्पिता नौपाः । प्रस्तर विस्तृतहृदयः प्रियो निकटे नायाति ॥ ६६ ॥ इति माला ॥ (G). For Private and Personal Use Only - - १६० । १ देखि (B & C ). २ क्किम (A), किम (B & C ). ३ उपरि (A). ४ मत्तदि ( E & F' ). ५ अत्तत (A ), अन्तत (B), संतहि (C & F). ( विद (A). हिञ्चर (B), पञ्चचि (C). ०५९ (A), ( ० ( F' ).
SR No.020566
Book TitlePrakrit Paingalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandramohan Ghosh
PublisherCalcutta
Publication Year1902
Total Pages727
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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