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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मात्रारत्तम् । २३३ जहा, भमइ महुअर' फुल्ल अरबिंद, णबकेसु काणण जुलि', सब्बदेस पिकराबर चुल्लित्र, सिअल पबण लहु बहइ, मल कुहर णब बलि पेल्लिन। चित्त मणोभब सर हणइ दूर दिगंतर कंत । किम परि अप्पउ बारिपहउ एम परि पलिअ"दुरंत॥ १३५१६ ॥ राजसेना। कलः ॥ तत्र प्रथमे पादे छौ [१] इति हतीये न कार्य इत्यर्थः, एवं च द्वितीये द्वादश चतुर्थ एकादश माचेति निष्कर्षः ॥ हतौयचतुष्कलस्थाने जगणचतुर्लघुर्वा देयः ॥ अवरयोस्तृतीयपंचमयोरते रूघुवयं देयमित्यर्थः ॥ समयोः पादयोः द्वौ पदाती सर्वत्र लघुमंते विसजय ॥ चतुर्थ चरणो विचार्य एक लघुमाकृष्य क्रियतां ॥ एवं पंचपादोडवनं कृत्वा वस्तुनाम पिंगलः कथयति, स्थापयित्वा दोषहीनं दोहाचरणं राजसेनरंडामिति भणति ॥ (G). १३५ । १ मडकर (F). १ फम (A), पलो (F). ३ परइंद (D). ४ शवकिस (F). ५ फुलिच (D), पुझिप (F). पिकराच (A), पिकरवे (B & C), पिच राव (D), पिक राग (F). 0 मालच बाहर वण (C). ८ वशिच (D). चेज (B & C). १० सरे (B). ११ दिगंत (F). Three letters dropt after त in (C). १२ केम (A), के (B & C). १३ धारि (C), वादिरि (E). १४ पा एव (C), र short. Vide श्लोक ५, p. 7. १५ पलि (A), पलिर (C), मति (F). १६ ३० (A), २६ (F). 30 . For Private and Personal Use Only
SR No.020566
Book TitlePrakrit Paingalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandramohan Ghosh
PublisherCalcutta
Publication Year1902
Total Pages727
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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