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________________ Y. - - सर्व संसारी जीवोने अनंतमे। जागे सिद्ध द्वार ७ ते सिद्ध तेम|| ने दर्शन ज्ञान ॥ सव्व जीयाण मणंते। नागे तेतेसिं दंसणं नापं ॥ क्षायकनावे जे परिणामीकनावे। वली होय जीवत्वपणुं द्वार | हवे सिद्धना १५ नेद ॥६५॥ खइएनावे परिणामिएय। पुण होइ जीवत्तं ॥६५॥ जिनसिद्ध अरिहार सामान्य के घरवासे सिद्धा ते तापसादीक वली तिर्थ थाप्या पले सिद्धाते? लींगे ते? जिनलींगे? स्त्री नर तिर्थ थाप्या विना सिद्धा ते। पुरुष क्रतनपुंसक॥ जिण?अजिणशतिबा३ गिहिअन्नसलिंगीन्नरए" तिबं। प्रतीबोधे सिद्धा ते? [नपुंसा१०॥ बाझ प्रत्यय देखीने सिद्धा ते एक समे एक सिद्धा ते एक स पोतानी मेले सिद्धा ते। मय अनेक सिद्धा ते१ ॥६६॥ पत्तेय?१सयंबुघा१२। बुधबोहि१३२१४णिकाय१॥६६॥ हवे अल्पा बहुत्व द्वार ५ स्त्रि सिद्ध पुरुष सिद्ध अनुक्रमे संख्या थोमा नपुंसक सिद्ध थया। त गुणा द्वार ए॥ थोवा नपुंससिघा। थी नर सिघा कमेण संखगुणा॥ एम मोक्षतत्व नवद्वारे एकमुहै। एम नवेतत्व लेषमात्र कह्यां॥६॥ श्य मुकतत्त मेयं। नवतत्ता लेसन नणिया॥६॥ जीवादी नवपदार्थ प्रत्ये।जे जीव जाणे तेहने होय सम्यक्त दर्शन गुण जीवाश् नव पयजे। जो जाण तस्स होइ सम्मत्तं ॥ अथवा नपयोगपणे सर्द नवतवत्व प्रत्ये अजाणताने पण|| हेतो तेहने होय। सम्यक्त ॥ ६ ॥ नावेण सहहंतो। अयाणमाणेवि सम्मत्तं॥६॥ - - - - D
SR No.020562
Book TitlePrakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavchand Jechand Shah
PublisherRavchand Jechand Shah
Publication Year1888
Total Pages226
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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