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________________ - ३० गति च्यार। इंद्री पांच५ काय जोग त्रण वेदत्रण३ कषाय च्या|| बद। र ज्ञान पाठ ॥ गइर इंदिअ काए । जोए वेएएकसायनाणेसु॥ संजम सात दर्शन च्यार लेस्या नव्य बेर सम्यक्त ड६ संनि बेश बद। थाहारि बेश्ए मार्गणा कही।८१|| __ संजमदंसंणाण्लेसार। नवसम्मे१२सन्नि?३ाहा हवे केटली मार्गणाए सिद्धि मनुष्य नव्यत्व र संनिर[रे१४॥६॥ गतिर पंचेंद्रीजाति त्रसकाय'। यथारख्यात चारीत्रर॥ नरगरपणिदिश्तस। नवसन्निएअहवायः॥ क्षायक सम्यक्ते मोक्ष पांमे केवलदर्शन केवलज्ञानर ए दशे|| अणहारी मार्गणा। मोक्ष पांमे नही बाकी मार्गणाए मोक्ष द्वार? ॥६॥ खश्यसम्मत्ते मुकोण केवल दंसणाण्नाणेरन सेसे हवे द्रव्यप्रमाणमा [हार। जीवद्रव्य होय अनंत[सु॥६॥ सिद्धनगवान् तेमना। संख्याये द्वार॥ दव्वपमाणे सिघाणं। जीवदव्वाणि हंति णंताणि ॥ चन्दराजलोकना असंख्यात जाग एकमां एक सिद्ध डे वा सर्व सिद्ध डे दार३ ॥३॥ लोगस्स असंखि। नागे एकोय सव्वेसिं ॥६३॥ सिद्धनी स्पर्शना अधीकीले द्वार एक सिद्ध आश्री सादिअनंतले स हवे कालद्वार कहे। आश्री अनादिअनंत ले द्वारा फुसणा अहिया कालो। इग सिघ पमुच्च साइनणंतो॥ तीहांथी पमवाना अनावथी। सिद्धोने अंतर नथी द्वार६॥६॥ पमिवाया नावान। सिघाणं अंतरं ननि ॥६॥ मा। मा
SR No.020562
Book TitlePrakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavchand Jechand Shah
PublisherRavchand Jechand Shah
Publication Year1888
Total Pages226
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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