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________________ १४ कर्मबांधेतेकर्मथीमुकावेते। तीमज। नवतत्व होय जाणवा ॥१॥ बंधो मुकाया तहा। नवतत्ता हुंति नायव्वा॥२॥ १जीवना१४चनद श्अजीवना१४ पापनाश्व्यासी होय चनद ३पुन्यनाश्वेतालीस। एमाश्रवनाथ श्वेतालीस॥ चन्दस चन्दस बायालीसा। बासीय हुंति बायाला॥ बंधनाच्यार एमोक्षनाएनव ए ने उनीर्जरातपना र श्बार। दअनुक्रमे नवेना २७६ थया ॥२॥|| सत्तावनं बारस। चन नव नेत्रा कमेणसिं ॥२॥ इहां जिनशासने एक प्रकारे च्यार प्रकारे पांच प्रकारे ब प्रकारे बे प्रकारे त्रण प्रकारे। जीव कह्या बे॥ एगविह दुविह तिविहा। चनविहा पंच उ विहा जीवा॥ ज्ञानादि चेतना सहीत ते ए त्रण वेदवाला३ च्यारगतीना पां क नेदे त्रस थावर एबे नेदे। चइंद्रीनाए बकायना६ ॥३॥ ___ चेत्रण तस ईयरेहिं। वे गई करण काएहि॥३॥ हवे जीवना १४नेद ते एकंद्री सु संनीयो? असंनीयो? पंचेंद्री स क्ष्म ने वादर। हीत बेरंद्री? तेरंद्री? चोरंद्री? ॥ एगिदिश सुहृमि अरा। सन्निअर पणिंदिाय स बि ए सात अपर्याप्ता तथा अनुक्रमे चनद जीवनां [ति चक॥ पर्याप्ता मलीने। तेकांणां वा नेद ॥४॥ अपऊत्ता पऊत्ता। कमेण चन्दस जिमणा ॥४॥ हवे जीवनुं लक्षण कहे ज्ञान द र्शन नीश्चे। चारीत्र वली तप तीमज ॥ नाणंच' दंसणं। चेव। चरितं३ च तवोध तहा॥
SR No.020562
Book TitlePrakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavchand Jechand Shah
PublisherRavchand Jechand Shah
Publication Year1888
Total Pages226
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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