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________________ नम्या वली नमसे घणो काल जीव कीया जिनवचन अण पांम कोण। ता॥४॥ नमिया नमिहिंति चिरं। जीवा जिणवयण मलहंताभए ते कारण माटे हवणां पां मनुषपणुं तेमां दुर्लन यथार्थ मीने सुं। श्रद्धा तत्वने वीषे ॥ ता संपई संपत्ते। मणुअत्ते दुलहेय समत्ते॥ आचाररूप लक्षमी सहीत शां करो हे नव्य जीवो उद्यम धर्मने तिसूरि नत्तम कहेडे॥ वीषे ॥५०॥ | सिरि संतिसूरि सिके। करेह जो नऊमं धम्मे ॥॥ ए पुर्वे कह्यो ते जीवनो जे अल्पमात्र रुचीवंतने वा मतिवंतने || वीच्यार। जांणवाने हेते॥ एसो जीव वियारो। संखेव रूईण जाणणा हेक ॥ संखेपमात्र वा अल्पमात्र निधस्यो। महागंजीर सुत्ररूप समुद्र थकी॥५१॥ संखित्तो नचरि। रूद्दा सुय समुद्दा ॥५॥ ॥ इति श्री जीवविचार सूत्र टबार्थ संपूर्ण ॥ - - - - ॥हवे श्री जिनागमे नवतत्व स्वरूप ले ते संक्षेपमात्र लखीइं बीए॥ ॥अथ नवतत्व लिष्षते॥ अशुजफलदाइकर्म कर्मयावेते? प्राणधारीचेतनश्जमअचेतन? कर्म रोके ते? प्राचीनकर्म अतांश शुनफलदाइ कर्म। यपणे नाश करे ते १ ॥ [रणा॥ जीवार जीवाश् पुणं३। पावा सव५ संवरोय निक - -------
SR No.020562
Book TitlePrakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavchand Jechand Shah
PublisherRavchand Jechand Shah
Publication Year1888
Total Pages226
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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