________________
%3
-
१२० नतस्स मायाव पियाव नाया।कालंमि तं मंस हरानवंति जीवीतव्य जलना बिंदु स धन धानादि संपत्ती ते [॥४३॥ मान जाणजे ने।
पाणीना कल्लोल समान ॥ जिअं जलबिंदु समं। संपत्ति तरंग लोला॥ सुप्न समानतो वली प्रेम वा ते माटे हे यात्मा हवे जेम जाणे स्नेह ।
तीम कर ननु ॥४॥ सुमिणय समंच पिम्म। जं जाणसु तं करिकासु॥४४॥ संध्याकालनो जे रंग तथा जल आ जीवोतव्य जलना बींदुनी ना प्रपोटीनी नपमाइं। परे चंचल ॥ __संझराग जलबुब्बु नवमे। जीविएअ जलबिंदु चंचले॥ ज्योवन ते पण नदीना पुर हे पापी जीव कीम नथी बोध पा|| समान वे ते माटे। मतो॥
जुव्वणे नश्वेग सन्निने। पावजीव किमिअंन बुझ्नसे।४॥ अन्यत्र जासे पुत्र अन्यत्र जासे स्त्री। चाकरादिक परीजन पीण
अन्यत्र जासे ।। अन्नब सूत्रा अन्नब गेहिणी। परिश्रणो वि अन्नब॥ जेम नूतने बल बाकुला दिधां देखतांज हणे वा मारे तांत जाय तेम कुटंब पण। वा काले ॥६॥
नूत्र बलिव्व कुमुंबं । परिकतं हय कयंतेणं ॥४॥ जीवे नवोनवे मुक्यां जे। देह वा सरीर जेटलां संसारे जमतां॥
जीवेण नवेनवे मिल्हिआई। देहाई जाइ संसारे। ते सरीरनी न थाय सागरोपमे। करी गणत्री वा संख्या अनंते पण
ताणं न सागरेहि। कीर संखा अणंतेहिं ॥४॥
-
-
-
-
-
-
-