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________________ १२६ तेम जीवने प्राप्त थये मरण पठे।धर्म कीम करीसके हे जीववीचार३५ तह संपत्ते मरणे। धमो कह कीरए जीव ॥३॥ रूप जे ते असास्वतु बे ए जे। वीजलीना चमकारानी परे चपल जगमां जीवीत ॥ रूव मसासय मेअं। विजुलया चंचलं जए जीअं॥ संध्यानां वादलांदिकना रं अल्पकाल रमणीक वली योवन || ग समान। ॥३६॥ संशाणराग सरिसं। खण रमणीअं च तारुनं॥३६॥ हाथीना काननी परे चपल लक्ष्मी त्रीदश वा देवताना चाप एहवी। वा इंद्रधनुष सरीखां॥ गय कन्न चंचलान। लबी तिस चाव सारिखं ॥ वीषयनां सुख जीवने एह माटे प्रतीबोध पांम रे बापमा वां । जीव नमुझ ॥३॥ विसय सुहं जीवाणं। बुनसु रेजीव मा मुश ॥३॥ जेम संध्याकाले पक्षीगणनो। संगम वा मेलाप तथा जेम मारगे रस्तागीरनो मेलाप ।। जह संशाए सनणाण। संगमो जह पहेब पहीआणं॥ तेम स्वजनादिकनो संजो तेमज अल्पकालमां नासवान ने हे ग वीनस्वर । जीव ॥३॥ सयणाणं संजोगो। तहेव खण नंगुरो जीव ॥३॥ रात्री वीरामते पाबली राते नगी घर बलते थके कीम हुँ सुइ नाव,। निसा विरामे परिनावयामि।गेहे पलिते किम ह सुश्रामि तीम बलेने देहरूप आपणु घर ते जे हुँ धर्म कस्या वीना दिव - - - - - - -
SR No.020562
Book TitlePrakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavchand Jechand Shah
PublisherRavchand Jechand Shah
Publication Year1888
Total Pages226
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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