SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 118
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - ११३ सच्चं सुअंपि सीलं। विनाणं तह तवंपि वेरग्गं ॥ जाय क्षणमां सर्व। वीषयरूप वीषे करीने साधुनु पण ॥१॥ । वच्च खणेण सव्वं। विसय विसेण जईपि॥७॥ अरे जीव मती वीकल्पीत। अांख मेंची घामे एटला काल स बंधी सुख लालसीइं कीम हे मूर्ख। रेजीव म विगप्पिय। निमेस सुह लालसो कहंमूढ ॥ सास्वतां सुख एह समान हारीस चंद्रमाना सहोदर जेहवो नी बीजु सुख नथी ते। रमल जस ॥७॥ सासय सुह मसमतमं। हारिसि ससि सोअरंच जसोश बल्यो वीषयरूप अग्नि जीहां चारीत्रनु सार बाले सघनु पण तेहथी। वा तथा पऊलिन विसयअग्गी। चरित्तसारं महिऊ कसिणंपि॥ समकितने पण वीराधे वा अनंत संसार वधारवापणु करे।३।। नांगे खंगे। सम्मत्तंपि विराहिल। अणंत संसारअं कुजा ॥३॥ बीहांमणा नव कंतार वा वीखम वा याकरी जीवने वीषयनी वनने वीषे। त्रस्ना ॥ नीसण नव कंतारे। विसमा जीवाण विसय तिपयना जे त्रस्नाइं नम्या चनद। पुरवी सरीखा ते पण रूले वा रझले नीचे नीगोद्यमां ॥॥ जीए नमिया चन्दस। पुव्वीवि रुलंतिहु निगोए॥४॥ खेदे वीषम अती खेदे अती वीषय जीवने जेहथी प्रतीबंध थइने॥ वीषम एहवा। हा विसमा हा विसमा। विसया जीवाण जेहिं पमिबघा॥ १५ - -
SR No.020562
Book TitlePrakaran Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavchand Jechand Shah
PublisherRavchand Jechand Shah
Publication Year1888
Total Pages226
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy