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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इसकी लिपि शक संवत्की ९ वीं शताब्दीसे पहिलेकी नहीं है, इसलिये यह दानपत्र जाली होना चाहिये. इसकी लिपि लिपिपत्र ३१ से मिलती हुई है, किन्तु अक्षरोंके सिरका ढंग निराला ही है. दानपत्रकी अस्ली पंक्तियोंका अक्षरान्तर:- . स्वस्ति जयन्त्यनन्तसंसारपारावारैकसेतव : महावीराह(है)त 8पू. ताश्चरणांबुजरेणव : श्रीमतां विश्वविश्वम्भराभिसंस्तूयमानमानव्यसगो. त्राणां हारि(री)तिपुत्राणां सप्तळो(लो)कमातृभिस्लप्तमातृभिरभिवहितानां कार्तिकेयपरिरक्षणप्राप्तकल्याणपरंपराणां लिपिपत्र ३३ वां. यह लिपिपत्र पश्चिमी चालुक्य राजा विक्रमादित्य पहिलेके दानपत्रकी छापसे (१) तय्यार किया है. इसमें शक संवत् ५३३ लिखा है, परन्तु इसकी लिपि शक संवत्की नवमी शताब्दी के आस पासकी है, जिससे यह दानपत्र जाली होना चाहिये. इसकी लिपि लिपिपत्र ३२ से मिलती हुई है, और कहीं कहीं 'म' भिन्नही प्रकारका है. दानपत्रकी अस्ली पंक्तियोंका अक्षरान्तर: ई जयत्याविष्कतं विष्णोाराह(हं) क्षोपि(भि)तार्णवन्दक्षिणोनतद्रं(द)ष्ट्रायं(य)विश्रान्तं भुवनं वपुः श्रीमतां सकळ(ल)भुवनस्तूयमानमानव्यसगोत्राणां हारि(री)तिपुत्राणां सप्तलो[क]मातृभिस्सप्तमातृभिरभिवर्द्धितानां कार्ती(र्ति)केयपरिरक्षणप्राप्तकल्ल्याणपरंपराणान्नारायणप्र--- लिपिपत्र ३४ वा. ___ यह लिपिपत गंगावंशी राजा देवेन्द्रवर्मा (२) के गांगेय संवत् ११ के दानपत्रकी छापसे (३) तय्यार किया है. इसमें कहीं कहीं 'अ, ख, ग, ज, ड, म, य, श, ष और ह' पहिलेसे भिन्नही प्रकारके हैं. दानपत्रकी अस्ली पंक्तियोंका अक्षरान्तर:ई स्वस्ति अमरपुरानुकारिण[:] सर्वतु(तु)सुखरमणीयादिजयव - (१) इण्डियन एण्टिकरी (जिल्द ७, पृष्ठ २१८ के पासको प्लेट ). (२) लिपिमत्र ३४ वें के सिरेपर ' देवेन्द्र वर्मा ' के स्थानपर नरेन्द्रवर्मा ' कृपगया है, जो अशुद्ध है. (३) इण्डियन एण्टिक्करी ( जिल्द १३, पृष्ठ २७४ के पासको भेट). For Private And Personal Use Only
SR No.020558
Book TitlePrachin Lipimala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar Harishchandra Ojha
PublisherGaurishankar Harishchandra Ojha
Publication Year1895
Total Pages199
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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