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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७२) लिपिपत्र ३० वा. यह लिपिपत्र चालुक्य वंशके राजा मंगलीश्वरके समयके शक संवत् ५०० के लेखकी छापसे (१) तय्यार किया है. इसकी लिपि लिपिपत्र २८ से मिलती हुई है, परन्तु 'ख, ग, ट, त, न, य, श' आदि कितनेएक अक्षरों में फर्क है, और अक्षरोंके सिर चौखूटे नहीं, किन्तु छोटी लकीर से बनाये हैं. लेखकी अस्ली पंक्तियोंका अक्षरान्तरः... स्वस्ति ॥ श्रीस्वामिपादानुध्यातानाम्मानव्यसगोत्राणाङ्हारिती(रीति) पुत्राणा - अग्निष्टोमाग्निचयनवाजपेयपौण्डरिकबहुसुवर्णाश्वमेधावभृथस्नानपवित्रीकृतशिरसा चल्क्यानां वंशे संभूत : शक्तित्रयसंपन्नः चल्क्यवंशाम्बरपूर्णचन्द्र : अनेकगुणगणालंकृतशरीरस्सर्वशास्त्रार्थतत्वनिविष्टबुद्धिरतिबलपराक्रमोत्साहसंपन्न : श्रीम लिपिपत ३१ वां. यह लिपिपत्र पूर्वी चालुक्य वंशके राजा अम्म दूसरेके दानपत्रकी छापसे (२) तय्यार किया है. इसमें संवत् नहीं दिया, परन्तु उक्त राजाका राज्य शक संवत् ८६७-९२ तक रहा था, जिससे इस दानपत्रका समय शक संवत्की ९ वीं शताब्दीका उत्तराई ठहरता है. इसकी लिपि लिपिपत्र २९ से कुछ मिलती हुई है, और 'र' अक्षर प्राचीन तामिळ 'र' से बना हुआ प्रतीत होता है. दानपत्रकी अस्ली पंक्तियोंका अक्षरान्तरः स्वस्ति श्रीमतां सकलभुवनसंस्तूयमानमानव्यसगोत्राणां हारीतिपुत्राणां कौशिकीवरप्रसादलब्धराज्यानाम्मातृगणपरिपालितानां स्वामिमहासेनपादानुध्यातानां भगवन्नारायणप्रसादसमासादितवरवराह लिपिपत्र ३२ वां. यह लिपिपत चालुक्य वंशके राजा पुलिकेशी पहिलेके दानपत्रकी छापसे (३) तय्यार किया है. इसमें शक संवत् ४११ लिखा है, परन्तु (१) इण्डियन एण्टिकरी ( जिन्द ३, पृष्ठ ३०५ के पासको प्लेट ). (२) इण्डियन एण्टिकरी (जिल्द १३, पृष्ठ २४८ के पासको प्लेट). (३) इण्डियन एण्टिकरी ( जिल्द ८, पृष्ठ ३४० के पासको घटे). For Private And Personal Use Only
SR No.020558
Book TitlePrachin Lipimala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar Harishchandra Ojha
PublisherGaurishankar Harishchandra Ojha
Publication Year1895
Total Pages199
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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