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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कुर्तकोटिके एक लेखमें “ 66 दक्षिण में बार्हस्पत्य स ंवत्सर लिखा जाता है, परन्तु वहां इसका बृहस्पति की गति से कोई सम्बन्ध नहीं है. बाईस्सत्य वर्षको सौर वर्ष के बराबर मानते हैं, जिससे चय संवत्सर मानना नहीं पड़ता, और केवल प्रभवादि ६० संवत्सरोंके नामसेहो प्रयोजन रहता है, और कलियुगका पहिला वर्ष प्रमाथी संवत्सर मानकर प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ला १ से क्रम पूर्वक नवीन संवत्सर लिखा जाता है, श० www. kobatirth.org दक्षिणी वार्हस्पत्य संवत्सर का नाम निकालनेका नियम नोचे अनुसार दृष्ट गत शक संवत् में १२ जोड़ ६० का भाग देन् से, जो शेष रहे, वह प्रभवादि वर्तमान संवत्सर होगा; या दृष्ट गत कलियुग स ंवत् में १२ नोड़ ६० का भाग देन से, जो शेष रहे, वह प्रभवादि गत संवत्सर उदाहरण--शक्र सौंवत् १८१६ में बार्हस्पत्य संवत्सर कौनसा होगा ? १८१६+१२= १८२८ ६.) १८२८ (३ १८० स ं० १८१६ ६०) ५००० (८३ 85. २०७ १८० H ( ४१ ) चा० वि० वर्ष ७ दुंदुभि संवत्सर पौष २८वां जय संवत्सर वर्तमान. कलियुग संवत् (१८१६+३१७९ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir = For Private And Personal Use Only २० गत संवत्सर, वर्तमान २८ वां जय संवत्सर, ( प्रमाथी प्रथम वर्ष कल्पादौ ब्रह्मणा स्मृतं । तदादि षष्ठिहृच्छाके शेषं चांद्रोत्र वरकरः ॥ व्यावहारिकस ंज्ञौयं काल : स्मृत्यादिकर्मसु । योज्य : सर्वत्र तत्रापि जेवो वा नर्मदोत्तरे - पतामह सिद्धान्त ). उत्तरी हिन्दुस्तान के प्राचौन लेखों में बार्हस्पत्य संवत्सर लिखने का प्रचार बहुत कम था, परन्तु दक्षिण में अधिक था. इसके अतिरिक्त एक दूसरा बार्हस्पत्य मान भौ है, जो १२ वर्षका चक्र है, जिससे सत्रों के नाम चत्रादि १२ महीनों के अनुसार हैं, परन्तु बहुधा महिनोंके नामके पहिले " लगाया जाता है, जैसे कि महाचैत्र, महावैशाख आदि. महा सूर्य समीप आनेसे बृहस्पति अस्त होकर सूर्य के आगे निकल जानेपर जिस नक्षत्र पर फिर उदय होता है, उस नक्षत्र के अनुसार संवत्सरका नाम नौचे अनुसार रक्खा जाता है:कृतिका या रोहिणीपर उदयहोतो महाकार्तिक; मृगशिर या आर्द्रापर महामाघ पुनर्वसु या पुष्यपर महापौष, अश्लेषा या मघापर महामाघ पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी या हस्तपर महाफाल्गुन; चित्रा या स्वातिपर महाक्षेत्र, विशाखा या अनुराधापर महावैशाख, ज्येष्ठा या मूलपर महान्येष्ठ; पूर्वाषाढा या उत्तराषाढापर महाप्राषाढ़ श्रवण या धनिष्ठापर महाश्रावण, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपदा या उत्तराभाद्रपदापर महाभाद्रपद, और ) ४८८५+१२ = ५०००
SR No.020558
Book TitlePrachin Lipimala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar Harishchandra Ojha
PublisherGaurishankar Harishchandra Ojha
Publication Year1895
Total Pages199
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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