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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४०) इसलिये चालुक्यविक्रम संवत् २ शक संवत् ९९९ के मुताबिक, और शक संवत् और इस संवत्का अन्तर ९९७ वर्षका है. ३१ पल, और ३० विपलका होता है, इसलिये बाईसत्य संवत्सर सौरवर्ष से ४ दिन, १३ घड़ी, २६ पल छोटा होता है, जिससे प्रत्येक ८५ वर्ष पूरे होने पर एक संवत्सर क्षय होजाता है. बाईसत्य मान ६० वर्षका चक्र है, जिसके नाम क्रमसे ये हैं: १ प्रभव, २ विभव, ३ शुक्ल, ४ प्रमोद, ५ प्रजापति, १ अङ्गिरा, ७ श्रीसुख, ८ भाव, युवा, १० धाता, ११ ईश्वर, १२ बहुधान्य, १३ प्रमाथौ, १४ विक्रम, १५ वृष, १६ चित्रभानु, १७ सभानु, १८ तारण, १९ पार्थिव, २० व्यय, २१ सर्व जित्, २२ सर्व धारी, २३ विरोधी, २४ विकृति, २५ खर, २६ नन्दन, २० विषय, २८जय, २६ मन्मथ, ३० दुर्मुख, ३१ हेमलम्ब, ३२ विलम्बी, ३३ विकारी, ३४ भारी, ३५ प्लव, २६ शुभकत, ३७. शोभन, ३८ क्रोधी, ३९ विश्वावस, ४० पराभव, ४१ प्लवन, ४२ कोलक, ४३ सौम्य, ४४ साधारण. ४५ विरोधकत्, ४६ परिधावी, ४७ प्रमादी, ४८ अानन्द, ४५ राक्षस, ५० अनल, ५१ पिङ्गल, ५२ कालयुक्त, ५३ सिद्धार्थी, ५७ रौद्र, ५५ दुर्मति, ५६ ९दुभि, ५७ रुधिरोद्गारो, ५८ रहाक्षी, ५८ क्रोधन, और ६. क्षय. - वराहमिहरने कलियुगका पहिला वर्ष विजय सवत्सर माना है, परन्तु ज्योतिषतत्वकारने प्रभव माना है. उत्तरी हिन्दुस्तान में इसका प्रारम्भ हहस्पतिके राश्यतरसे माना जाता परन्त व्यवहार में चैत्र शला १ से नया संवत्सर लिखते हैं. विक्रम व के पंचनामें परामव संवत्सर लिखा है, जो पैत्र शुक्ला १सेचैत्र कृष्णा अमावास्या तक (एक वर्ष ) माना जायेगा, परन्तु उसी पंचाङ्ग में लिखा है, कि (सष्टमानसे) विक्रम संवत् १९५१ के प्रारम्भसे ६ महीने, १६ दिन, ४५ घड़ी, और ३६ पल पूर्व पराभव संवत्सरका प्रारम्भ होगया था ( काशौके ज्योतिषप्रकाश यन्त्रालयका छपा हुआ वि० सं० १९५१ का पंचाङ्ग). वराहमिहरके मतसे उत्तरी बाईसत्य वर्ष का नाम निकालनका नियम यह है: इष्ट गत शक संवत्को ११ से गुणो, गुणनफलको ४ से गुण उसमें ८५८५ जोड़ दो, फिर योग; ३०५० का भाग देने से जो फल पावे उसको इष्ट शक संवत्में जोड़दो, योगमें ६० का भाग देनसे. जो शेष रहे वह प्रभवादि गत संवत्सर होगा ( गतानि वर्षाणि केन्द्र कालाइतानि रुद्रगुणधेच्चतुर्भि: । नवाट पञ्चाष्टयुतानिकृत्वा विभाजयच्छन्यगरागरामैः । फलेन युक्त शकभूपकाल सगोध्यशष्ठया............भेषाः क्रमश : समास्यु : ॥ वाराही सहिता पध्याय ८, श्लोक २०-२१). उदाहरण- विक्रम संवत् १८५१ में बाईसत्य संवत्सर कौनसा होगा? विक्रम संवत् १९५१ = शक संवत् (१९५१-१३५ = ) १८२६ गत. १८१६४११ = १८८७६x४ = ७६८.४+६५८८ = ८८४८३:३०५० = २३२२ २३+१८१६% १८३८ ६०) १८३८ (३. १८. ३८ गत सवरपर, वर्तमान ४० वां पराभव, For Private And Personal Use Only
SR No.020558
Book TitlePrachin Lipimala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar Harishchandra Ojha
PublisherGaurishankar Harishchandra Ojha
Publication Year1895
Total Pages199
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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