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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३२) प्रतिष्ठान पुरके राजा सातवाहन (शालिवाहन ) ने “ गाथासप्तशती" नामका पुस्तक रचा है, जिसकी समाप्तिमें सातवाहनके हाल और शतकर्ण ( शातकर्णी ) आदि उपनाम होना लिखा है ( १ ). वासिष्ठी - पुत्र पुळुमायिके १९ वें वर्ष के नाशिक के लेख में ( २ ) शातकर्णी राजा के वृत्तान्तनें लिखा है, कि वह असिक, सुशक, मुळक, सुराष्ट्र, कुकुर, अपरान्त, अनूप, विदर्भ, आकर, और अवन्ति देशका राजा था, उसके अधिकार में विन्ध्य, ऋक्षवत्, पारियात्र, सहा, कृष्णगिरि, मंच, श्रीस्थान, मलय, महेन्द्र, षगिरि और चकोर पर्वत थे. बहुत से राजा उसके आज्ञावर्ती थे, उसने शक, यवन, और पल्हवोंका नाशकर सातवाहन वंशकी कीर्ति पुनः स्थापन की, और खखरात ( क्षहरात ) वंशको ( ३ ) निर्मूल किया. गाथासप्तशतीका कर्ता सातवाहन - शतकर्ण ( शातकर्णी ) और उपरोक्त लेखका गौतमीपुत्र शातकर्णी एकही राजा होना चाहिये. महा प्रतापी और शक लोगोंका नाश करनेवाला होनेसे ऐसा अनुमान होता है, कि शक संवत् के साथ जो शालिवाहनका नाम जुड़ा है, वह इसी राजाका नाम होगा, परन्तु वास्तवमें शक संवत् इस राजाने नहीं चलाया, क्योंकि गौतमीपुत्र शातकर्णी शक राजाके प्रतिनिधि नहपान ( क्षत्रप ) से राज्य छीनने के पश्चात् प्रतापी राजा हुआ था. नहपानके जमाई उषवदात ( ऋषभदत्त ) और प्रधान अय्यमके लेखोंसे पायाजाता है, कि शक संवत् ४६ तक राजा नहपान विद्यमान था, तो स्पष्ट है, कि शातकर्णीका प्रताप शक संवत् ४६ से कुछ पीछे बढ़ा है. इसलिये शातकर्णी शक संवत्का प्रारम्भ करने वाला नहीं हो सक्ता ( ४ ). इसके पीछे इसी वंश ( १ ) इति श्रोमस्कुन्तल जनपदेवर प्रतिष्ठानपत्तनाधी प्रशतकर्णोपनामक दीपिकर्णात्मनमशयवतीप्राणप्रिय 'हालाद्युपनामक श्री सातवाहननरेन्द्रनिर्मिता विविधान्योक्तिमय प्राज्ञगौगुम्फिता चिरप्रधाना काव्योत्तमा सप्तशत्य ७०० वसानमगात् ( प्रोफेसर पीटर्स मका ई० सन् १८८४-८६ का रिपोर्ट, पृष्ठ ३४० ), (२) आर्कियोलाजिकल सर्वे आफ उवेटनं दूडिया ( जिल्द ४, पृष्ठ १०८, ८) 22 (३) नहपान के जमाई उषवदात ( ऋषभदस्त ), पुत्री दक्षमित्रा, और प्रधान अय्यम के लेखोंमें नहपानको “ चहरात चत्रप " लिखा है, गौतमीपुत्र शातकर्णीको “ खखरात ( चहरात ) वंशका निर्मूल करने वाला लिखनेसे पायाजाता है, कि उसने नहपानको वंशका नाश कर उसका राज्य कौन लिया था. ( ४ ) प्रसिद्ध भूगोल वेत्ता टॉलेमीने ई० स० १५१ में भूगोलका पुस्तक लिखा था, जिसमें पैठण राजाका नाम श्रीपुच्छुमाथि ( Siro polemios ) लिखा है, जो गौतमीपुत्र शातकर्णीक क्रमानुयायी था. इससे पुळुमाथिका ई० स० १५९ ( प्र० स० ०३ ) के पहिले से राज्यकरना पायाजाता है. For Private And Personal Use Only
SR No.020558
Book TitlePrachin Lipimala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar Harishchandra Ojha
PublisherGaurishankar Harishchandra Ojha
Publication Year1895
Total Pages199
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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