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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लेकर संधि कारनेके पश्चात् यह संवत् चलाया (१). प्रसिद्ध मुसल्मान ज्योतिषी अलबेरुनी, जो महमूद गजनवीके साथ इस देशमें आया था, वह लिखता है, कि विक्रमादित्यने शक राजाको पराजयकर यह संवत् चलाया है (२). इस प्रकार इसके प्रारंभके विषयमें भिन्न भिन्न बातें प्रसिद्ध है. शक संवत्की ११ वीं शताब्दीतकके किसी लेख या दानपत्र में शालिवाहनका नाम नहीं पाया जाता, किन्तु"शककाल", "शक समय", "शकनृपतिसंवत्सर", "शकनृपतिराज्याभिषेकसंवत्सर", आदि शब्द इसके लिये मिलते हैं, जिनसे पाया जाता है, कि किसी शक राजाके राज्याभिषेक से या विजय आदि किसी प्रसिद्ध कारणसे यह संवत् चला है. शालिवाहनका नाम पहिले पहिल देवगिरि (दौलताबाद ) के यादव राजा रामचन्द्र के शक संवत् ११९४ के दान पत्रमें मिला है ( ३ ). उस समयसे पहिलेके अनेक लेख और दानपत्र मिले हैं, जिनमें शक संवत्के साथ शालिवाहनका नाम न रहनेसे यह शंका उत्पन्न होती है, कि ११०० वर्षतक तो यह संवत् शक राजाके नामसे चलता रहा, और पीछेसे इसके साथ शालिवाहनका नाम केसे जुड़ गया? शालिवाहन नामके पर्याय "शाल","साल", "हाल", "सातवाहन", "सालाहण" आदि हैं (४). सातवाहन (आंध्रभृत्य)वंशके राजा इस संवत्के प्रारम्भके पहिलेसे दक्षिणमें राज्य करते थे, जिनका वृत्तान्त वायुपुराण, मत्स्यपुराण (५), विष्णुपुगण (६), और भागवतमें (७) मिलता है, और उनके कितने एक लेख नानाघाट, कालिं, और नाशिककी गुफाओंमें तथा अन्य स्थानों से मिले हैं. ( १ ) प्रबन्धचिन्तामणि ( बाईको छपी हुई, पृष्ठ २८ और ३० का नोट ). (२) अनोखने.न इंडिया ( अरबौ किताब “ तारीख अलबेनी” का अंग्रेजो तर्जुमा, साक्टर एडवड से चूका किया हुआ, जिल्द २, पृष्ठ ६ ). (३) श्रौ मालिवाहन शके ११८४ अंगिरासंवत्सरे आश्विन शुद्ध १५ रवी ( इण्डियन एरिट - री, जिल्द १२, पृष्ठ २१४). (४) “ भालो हाले मत्स्य भेद ", " हाल : सातवाहन पार्थिवे” ( हैम अनेकार्थकोश). साखाहणम्मि हालो (देभी नाममाला, वर्ग ८, श्लोक ६६). हालो सातवाहनः (देशीनाममाला, वर्ग ८, श्लोक ६६ को टौका). शालिवाहन, भालवाहन, मालवाहण, सालवाहन, सालाहणा, सातवाहन, हालेत्य कस्यनामानि (प्रबन्ध चिन्तामणि, पृष्ठ २४ का नोट). (५) मत्स्यपुराण ( अध्याय ३७३, श्लोक २-१७). (६) विष्णु पुराण ( अंग ४, अध्याय २४, श्लोक १७-२१). (७) बीमद्भागवत (वन्ध १२. अध्याय १, श्लोक २२-२८). For Private And Personal Use Only
SR No.020558
Book TitlePrachin Lipimala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar Harishchandra Ojha
PublisherGaurishankar Harishchandra Ojha
Publication Year1895
Total Pages199
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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