SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्राचीन भारतीय अभिलेख अशोक, भागभद्र, खारवेल, गौतमीपुत्र शातकर्णी आदि के लेखों में यही पद्धति है। अनंतर दिन, ऋतु आदि के भी उल्लेख होने लगे। बाद में ईसवी पूर्व 58-57 में चले विक्रम संवत् या ईसवी 78-79 में प्रारम्भ हुए शक संवत् के उपयोग होने लगे। विक्रम संवत् का आरंभ में कोई नाम नहीं मिलता। बाद में उसे कृत या मालव कहा जाने लगा। फिर 8-9वीं सदी में विक्रमादित्य नाम के साथ उसके उल्लेख मिलते हैं। गुप्त संवत् या वलभी संवत् 319 ई० से प्रचलित हुआ। चेदि या कलचुरि संवत् 248-49 ई० में प्रचलित हुआ था। इनके अतिरिक्त भी कई राजाओं या राजवंशों के नाम से विभिन्न संवत् प्रचलित होते रहे जिनमें से बहुधा अल्पजीवी ही रहे। प्रामाणिक इतिहास ज्ञात करने में अभिलेखों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहता है। अभिलेखों से वंश-परम्परा, युद्ध, राज्यसीमा, समकालीन नरेश, शासन-व्यवस्था, शासनप्रणाली (राजतंत्र-प्रजातंत्र),सामाजिक स्थिति, आर्थिक दशा, धार्मिक व्यवस्थाएं, भाषिक विकास, साहित्यिक उपलब्धियां, शैक्षणिक स्थिति, कला इत्यादि के विषय में प्रामाणिक विवरण प्राप्त हो जाते हैं। अभिलेखों से विभिन्न लिपियों के विविध विकास का प्रामाणिक लेखा जोखा प्राप्त किया जा सकता है। अंकों का विकास भी इनसे स्पष्ट हो जाता है। अभिलेखों से भौगोलिक स्थितियां, मार्ग, सार्थवाह, बन्दरगाह, नगर, आक्रमण पथ, नदियां, पर्वत आदि की स्थिति का ज्ञान हो सकता है। इन लेखों से स्पष्ट हो जाता है कि ब्राह्मी से भारतीय विभिन्न लिपियां विकसित हुई हैं। ब्राह्मी, खरोष्ठी लिपि तथा संस्कृत-प्राकृत के लेख भारत के साथ ही मध्य एशिया, चीनी तुर्किस्तान, नेपाल, श्रीलंका, बर्मा, थाईलैण्ड, मलाया द्वीप, कम्बोडिया, दक्षिण अनाम (चम्पा) इत्यादि स्थानों से भी प्राप्त हुए हैं। अभिलेख धातुओं, ताम्रपत्रों, मूर्तियों, शिलाओं, प्रतिमाओं, स्तम्भों, भित्तियों, पात्रों, सिक्कों, मुहरों, गहनों इत्यादि विभिन्न आधारों पर प्राप्त हुए और होते जा रहे हैं। हर समय कहीं न कहीं से नया लेख प्राप्त हो जाता है। कहीं गुहाओं में भी मिल जाते हैं। ये लेख उत्कीर्ण भी हो सकते हैं और रंगों से लिखे हुए भी। ऐसे लेखों में कई लेख मन्दसौर (म०प्र०) जिले के भानपुरा क्षेत्र के चिब्बरनाला से प्राप्त हुए हैं। इनमें प्राथमिक वाचन के अनुसार बौद्ध परम्परा से सम्बद्ध हैं। ईसवी पूर्व के एक लेख में कालिदास तथा सिबि का भी उल्लेख है। मन्दसौर के पास अंवलेश्वर के ईसवी पूर्व के स्तम्भ लेख में विक्रमादित्य का उल्लेख है। मन्दसौर जिले के ही रिस्थल से औलिकर राजा प्रकाशधर्मा का 515 ई० का शिलालेख इसलिए For Private And Personal Use Only
SR No.020555
Book TitlePrachin Bharatiya Abhilekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwatilal Rajpurohit
PublisherShivalik Prakashan
Publication Year2007
Total Pages370
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy