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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुरस्कार भारतीय प्राच्य भाषाओं में प्राकृत का अपना अनोखा स्थान है । प्राचीन तथा मध्ययुगीन भारतीय संस्कृति का अच्छी तरह से आकलन होने के लिए और आधुनिक भारतीय भाषाओं के यथार्थ अध्ययन के लिए प्राकृत का यथायोग्य अध्ययन होना अत्यावश्वक है । साहित्य के संपूर्ण पाखाओं से , विशेषतः कथात्मक साहित्य से प्राकृत सुसंपन्न है । माध्यमिक विद्यालयीन स्तर पर से व्याकरण के प्रावभमि पर प्राकृत भाषा और साहित्य की जानपहचान होने के बाद विद्यार्थियों को प्राकृत साहित्य के विविध क्षेत्रों में प्रवेश करने को विज्ञासा निर्माण होती है। मैं बहोत प्रसन्नता से पाहता है की मनोरंजक और उद्बोधक पाठ चुन कर तैयार की गयी यह 'वषयकुसुमावली' विद्यार्थियों की यह जिज्ञासा पूरी कर सकती है। इसके प्रत्येक पाठ के आरंभ में मूलग्रंथ, ग्रंथकार, समय, आदि के बारे में प्रास्ताविक लिखकर अन्त में कठिन शब्दार्थ तथा प्रत्येक पाठ का शब्दशः अनुवाद दिया है। इसलिए यह पुस्तक विद्यार्थियों में प्राकृत भाषा और साहित्य की दिलचस्पी निर्माण करेगा ऐसी मेरी प्रामाणिक श्रध्दा है । इसलिए मैं प्रा. मा. श्री. रणदिवे का अभिनन्दन करता हूँ। आजकल पाथर्डी में श्री प्राकृत भाषा प्राचार समिति अपने सामने बडे आदर्श रख कर अभिनन्दनीय कार्य कर रही है यह बात अत्यंत श्लाघनीय है । समिति के इस अंगिकृत कार्य में दिन-प्रतिदिन प्रगति हो और नवचैतन्य प्राप्त यही मेरी हार्दिक सदिच्छा है। कर्नाटक आर्टस् कॉलेज धारवाड ३१-५-१९७२ बी. के. खडबड़ी For Private And Personal Use Only
SR No.020552
Book TitlePayaya Kusumavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhav S Randive
PublisherPrakrit Bhasha Prachar Samiti
Publication Year1972
Total Pages169
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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