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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बोमारी के खान, पान में ऐसी गलतियाँ और असावधानी देख कर चित्त को बड़ा हो खेद होता है। और परिचारको की बुद्धि पर दया आजाती है। खान, पान की इन भूलों से लापरवाही और अज्ञानता से अनेको अकाल मृत्यु को प्राप्त होगये, जिसके उदाहरण हमारे हो सामने नहीं वरन इसका व्यवसाय करने वाले सब के सामने बनते हैं। . बताये पथ्य पर लोग चलते ही नहीं___ यह कहते शोक होता है, कि लैद्यों की की हुई सूचनाओं पर यथोक्त अमल नहीं होता है, और चिकित्सक को रोगो के यहाँ से बाहर होने के साथ ही इस विषय के अनधिकारो होने पर भी घर के कुटुम्बी पड़ोसी और बूढ़ो विधवाएं सिद्ध वैद्य बन बैठती है। रोगी को जहाँ एक घुट उतरना भी कठिन और वह भो अनावश्यक होता है, वहां उसको डराके धमका के ज़बरदस्तो कर के भरा कटोरा गले में आँधाकर पेट में भरते हैं। कहो यह अपने हाथों कितना अनिष्ट होता है । मुह से बोलने की शक्ति रखने वाले तो फिर भा बड़े उद्योग से इससे थोड़ो बहुत रक्षा पा सकते हैं, ऐसा हम अनुमान कर ले परन्तु जब दूध मुंह बच्चों के साथ, जो बोलने की शकि नहीं रखते, इस प्रकार वर्ताव किया जाता होगा तब उनकी क्या गति होती है, यह तो भगवान ही समझते हैं। बच्चा ज्योही रोने लगा कि माता झट स्तन पान कराने लगती हैं, पर रोने का असली कारण जानने की दरकार नहीं होती। बच्चों को दूध अधिक पी लेने से ही अजीर्ण हुअा हो, दस्त लगते हो, वमन होता हो, उसी से चाहे वह रोता हो तौभी इनकी वहां परवाह कौन करता है ? अाज की|स्त्रियाँ तो केवल घड़ी घड़ी स्तनपान कराने में ही उनके पथ्य का बहुत बड़ा For Private And Personal Use Only
SR No.020550
Book TitlePathya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunamchand Tansukh Vyas
PublisherMithalal Vyas
Publication Year
Total Pages197
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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