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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १३ ) बीमारों को तंगी रहते हुए भी अधिक खिलाकर बिना मौत मारते हैं । यह तो प्रति दिन का अनुभव है, कि समय पड़ने पर प्रायः सभी बीमार होने पर डाकुर वा वैद्य की सलाह तो लेते हैं, उन्हें फीस आदि देकर द्रव्य का भी खर्च करते हैं; परन्तु जिस पथ्य के आधार पर जीवन और लाभ हानि है उसकी सारी बागडोर बूढ़ी डोकरियों केही हाथ रहती है । चाहे चिकित्सक ने अमुक अमुक वस्तु सेवन करने वा श्राहार विहार करने की प्राज्ञा न दो हो; परन्तु स्वयं बीमार मनके वशीभूत वन कर छिपके अपथ्य कर बैठता है; और बुढ़ियां रोगी की इच्छा को घरौवा बताने के लिये अज्ञानतावश पूर्ण करने में सहायक होती है, और इस पर भी तुर्रा यह है कि वैध जी के पूछने पर कभी सच नहीं कहतीं, बरन् पथ्य का महत्व बतलाती हुई अपने को समझदार सिद्ध करती हुई सीधा मुह रख के उत्तर देती हैं कि "श्राप की आज्ञानुसार केवल दालका पानी ही दिया था, और कुछ भी नहीं दिया"। ऐसे झूठ बोलकर बिचारे वैद्यों और डाकृरों को ठग कर उन्हें विशेष परिश्रम और विचार में डालती है। भला जहां पथ्य के लिये इतनी अज्ञानता है, वहां रोगियों का कल्याण धुरन्धर वैद्यों की चिकित्सा होने पर भी कैसे हो? पथ्य में अनुचित हस्ताक्षेप रोगी को बिना इच्छा के उसके बन्धुगण विशेष कर स्त्रियां तो आग्रह करके कुछ न कुछ अधिक खिलाने में ही उसका भला समझती हैं । वे बिचारी अशिक्षा और स्वास्थ्य के नियमों और उसके लाभों की अनभिज्ञता के कारण यह नहीं समझती हैं कि इस थोड़ी सी वस्तु से ही कितनी हानि पहुंच सकती है। उनके सारे उद्योग और प्रयत्न की प्रसन्नता इसी में रहती For Private And Personal Use Only
SR No.020550
Book TitlePathya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunamchand Tansukh Vyas
PublisherMithalal Vyas
Publication Year
Total Pages197
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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