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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir और कुटुम्बियों पराभूति बताने के उस गज़ब ( १० ) ही कोई वस्तु कई दिनों तक लगातार रोगी को लेने के लिये बाध्य कर देते हैं और वह भी बिना नमक (!) विचारा रोगो दुःखी होकर भी आरोग्यता की शुभ आशा से सब कुछ मानने के लिये तयार है। पर वास्तव में ऐसे उपचारों से उनका रोग हटता है वा नहीं यह तो भगवान ही जानते हैं। पर उनसे मिलने भेटने एवं बीमारी में सहानुभूति बताने के लिये आनेवाले मित्रों और कुटुम्बियों पर रोगो की दोनता तथा उस गज़ब के पथ्य का भयानकपन उनके दिलों में जादू का असर कर जाता है और इसकी जान कारी रखने वाले वे अपनी अवस्था में बिना विशेष लाचार बने कभी भी कहने को इस आयुर्वेद के ट्रीटमेण्ट में पथ्य के वशीभूत बनने के लिये तैयार नहीं होते हैं। वे लोग यह जानने की आवश्यकता नहीं समझते-या उनको जताने का कोई साधन ही नहीं किया जाता है कि डाक्टरी के सिवाय अन्य जितनी चिकित्साएं आज कल होतो हैं, वे सभी आयुर्वेद को ही नहीं; किन्तु इसके आश्रय में अपना जीवन निकालने का प्रपञ्च करने वाली आयुर्वेद से भिन्न कोई दूसरी ही पैथी है। " इसके साथ ही एक बात यह भी है कि अच्छे की अपेक्षा खोटी और अचम्भे की बातें बहुत फैलती है; और यो पथ्य की जबरदस्ती लोगों के हृदय में दूर दूर तक जम जाती है। ___ जब रोग की बढ़ती मालूम होती है तब स्वास्थ्य के अन्य नियमों की ओर ध्यान न देकर और औषध प्रयोग और निदान में अपनी कमो न समझकर कई नीमहकोम अपना अपराध वा भूल बचाने का महत्व प्रकट करने के लिये बिना सच्चे प्रमाण और आधार के केवल अपथ्य For Private And Personal Use Only
SR No.020550
Book TitlePathya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunamchand Tansukh Vyas
PublisherMithalal Vyas
Publication Year
Total Pages197
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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