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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १६३ ) जब की धानी-ठंडी और मूत्र के रोगों में पथ्य है। गेहूं की धानी (परमल)-मंदाग्नि में पथ्य है। मूग (माडवा) बाजरी, (मुरमुरे) की धानी ज्वर में पथ्य है उदर रोग, शूल मंदाग्नि में इनका उपयोग लाभ दायक है। सेके धान्यों दूध का सेवन किया जा सकता है दूध के साथ मिला कर भी सेशन किये जा सकते हैं। अंगार बाटिया, रोटी, पुड़ी, रोटा, सोगरा । बहुत समय तक भीजोये हुये आटे को अच्छी तरह गुड़दा कर भले प्रकार से सेकी हुई रोटो श्रादि जल्दी पचती है। अंगार बाटिया-रोटी से जल्दी पचता है, हलका होता है पर कुछ गर्मी करता है अतः कई दिन लगातार सेवन नहीं करना चाहिये। रोटी-नरम होती है। अग्निमंद हो तथा लघंन के बाद अन्न प्रारम्भ में रोटो को पोलो दी जातो है फिर धोरे २ रोटी दी जाती है । ज्वरावस्था में जब ज्वर हो वा ज्वर चले जाने पर भी कुछ दिन तक रोटी लूखी खानी चाहिये । रुखी रोटी लेने से भूख खूब लगती है । करडी रोटी नरम को अपेक्षा देर से पचती है। ___ जाडी रोटो (बाटिया) देर से पचती है। बीमार को नहीं देनी चाहिये । निर्बलावस्था में भी देनी बुरी है। लगातार कई दिन तक लेने से रोग क पीछा उथला खा जाने का डर रहता रोटा-भारी होता है। देर से पचता है, भूख से ज्यादा खाने में प्राजाता है और उससे पाचन करने में बड़ी तकलीफ For Private And Personal Use Only
SR No.020550
Book TitlePathya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunamchand Tansukh Vyas
PublisherMithalal Vyas
Publication Year
Total Pages197
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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